गणिनी आर्यिका विधान
अनादिकाल से चौबीसों तीर्थंकर के समवसरण में आर्यिकाएं हुई हैं और आगे भी होती रहेंगी | दिगंबर जैनधर्म में जिस प्रकार मुनि पूज्य हैं उसी प्रकार आर्यिकाएं पूज्य हैं | मुनि के समान ही आर्यिकाओं के २८ मूलगुण हैं | २४ तीर्थंकरों के समवसरण में गणिनी माता सहित ५० लाख ५६ हजार २०० आर्यिकाएं थीं |
इसमें २ पूजा हैं , प्रथम पूजा ”तीर्थंकर समवसरण पूजा ” है जिसमें २४ तीर्थंकर पूजा हैं | पूजा २- में आर्यिका पूजा में २४ तीर्थंकरों के समवसरण में स्थित ब्राम्ही गणिनी सहित सर्व आर्यिका पूजा है | दोनों पूजाओं में २२८ अर्घ्य , १० पूर्णार्घ्य एवं २ जयमाला हैं | अंत में प्रशस्ति , आरती, वैराग्य भावना एवं भजन है | यह विधान भी अपने आप में महिमापूर्ण है | इस विधान को करके सभी नारियों को एक दिन आर्यिका दीक्षा प्राप्ति की भावना करनी चाहिए |