अनादि जैनधर्म
“आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है” इस उक्ति को चरितार्थ करने वाली प्रस्तुत पुस्तक की रचना कुछ गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के कर कमलों से हुए हैं।उन्होंने समय की आवश्यकता को देखते हुए भगवान ऋषभदेव के माध्यम से अनादिनिधन जैनधर्म का प्रचार- प्रसार करने का जो बिगुल देश भर में बजाया है, उससे निश्चित ही समाज में चेतना जागृत हुई है।
इस पुस्तक में पूज्य माताजी ने समाज में उत्पन्न नर नारियों के लिए एक विशेष प्रेरणा प्रदान की है कि प्रत्येक जैन को अपने नामों के आगे जैन शब्द का प्रवेश अवश्य करना चाहिए।
इस प्रकार यह पुस्तक अत्यंत लघु होते हुए भी गागर में सागर के समान अपने में अपूर्व सार को समाहित किए हुए हैं