26. नवदेवों की संख्या
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) इसके आगे स्वयं श्री गौतमस्वामी नवदेवों की संख्या दिखाते हुये कहते हैं— ‘‘इति पंचमहापुरुषा:, प्रणुता जिनधर्मवचनचैत्यानि। चैत्यालयाश्च विमलां, दिशंतु बोिंध बुधजनेष्टाम्।।१०।।’’ अमृतर्विषणी टीका— अर्थ- इस प्रकार पंचमहापुरुष—पांच परमेष्ठी जिनकी मैंने वन्दना की है। पुन: जिनधर्म, जिनवचन, जिनचैत्य और चैत्यालय ये नव देव मुझे बुधजन इष्ट ऐसी विमल बोधि—रत्नत्रय…