आस्रव :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] == आस्रव : == आस्रवद्वारै: सदा, हिंसादिक कर्मास्रवति। यथा नावो विनाशश्छिद्रै: जलम् उदधिमध्ये।। —समणसुत्त : ६०२ हिंसा आदि आस्रव द्वारों से सदा कर्मों का आस्रव होता रहता है। जैसे कि समुद्र में जल के आने से सछिद्र नौका डूब जाती है। मिच्छत्ताविरदी वि य, कसायजोगा य आसवा होंति। —जयधवला : १-९-५४ मिथ्यात्व,…