07. अर्हं मंत्र में पंचपरमेष्ठी विराजमान हैं
अर्हं मंत्र में पंचपरमेष्ठी विराजमान हैं अर्हमित्यक्षरब्रह्म वाचकं परमेष्ठिन:। सिद्धचक्रस्य सद्बीजं, सर्वत: प्रणिदध्महे।।११।। कर्माष्टकविनिर्मुत्तंक, मोक्षलक्ष्मीनिकेतनम्। सम्यक्त्वादिगुणोपेतं, सिद्धचक्रं नमाम्यहम्।।१२।। आकृष्टिं सुरसंपदां विदधते, मुक्तिश्रियो वश्यतां। उच्चाटं विपदां चतुर्गतिभुवां, विद्वैषमात्मैनसाम्।। स्तम्भं दुर्गमनं प्रति प्रयततो, मोहस्य सम्मोहनम्। पायात्पंचनमस्क्रियाक्षरमयी, साराधना देवता।।१३।। (पद्यानुवाद) शंभु छंद ‘‘अर्हं’’ यह अक्षर है, ब्रह्मरूप परमेष्ठी का वाचक। सिद्धचक्र का सही बीज है, उसको नमन करूँ…