गतियों से आने—जाने के द्वार ‘ भवाद्भवांतरावाप्ति: गति: ‘ एक भव को छोड़कर दूसरे भव के ग्रहण करने का नाम गति है। गति के चार भेद हैं— नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति। एक—एक गति से आने के और उसमें जाने के कितने द्वार हैं सो ही देखिये— नरकगति से आने—जाने के द्वार— नरक गति से…
तीर्थंकर जन्मभूमि व्रत वर्तमानकालीन २४ तीर्थंकरों की १६ जन्मभूमियों की वंदना के उद्देश्य से १६ व्रत करना है। व्रत के दिन उन-उन तीर्थंकरों की पूजन करें तथा ‘‘तीर्थंकर जन्मभूमि विधान’’ की पुस्तक से उन-उन जन्मभूमियों की भी पूजन करें। व्रत के उद्यापन में संभव हो तो सोलहों जन्मभूमियों की वंदना करें अथवा अयोध्या, हस्तिनापुर, वाराणसी…
कुण्डलपुर की माटी का, सचमुच कण-कण चन्दन मैं पिछले कई वर्षों से पूज्य ज्ञानमती माताजी के कार्यकलापों को देख रहा हूँ कि कितनी कर्मठता, कितनी निःस्पृहता और कितनी लगन से वे प्रत्येक कार्यों को मूर्तरूप प्रदान करती हैं। उनका प्रमुख लक्ष्य प्रारंभ से यही रहा है कि तीर्थंकरों की जन्मभूमियों का विकास अवश्य हो। इसी…
स्याद्वाद और सप्तभंगी स्यात्-कथंचित् रूप से ‘वाद’-कथन करने को स्याद्वाद कहते हैं। यह सर्वथा एकान्त का त्याग करने वाला है और कथंचित् शब्द के अर्थ को कहने वाला है। जैसे जीव कथंचित् नित्य है और कथंचित् अनित्य है अर्थात् जीव किसी अपेक्षा से (द्रव्यार्थिक नय से) नित्य है और किसी अपेक्षा से (पर्यायार्थिक नय से)…
पारसनाथ का किला -ब्र. कु. स्वाति जैन (संघस्थ) पश्चिमी उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले में नगीना रेलवे स्टेशन से उत्तर-पूर्व की ओर ‘बढ़ापुर’ नामक एक कस्बा है। वहाँ से चार मील पूर्व की ओर कुछ प्राचीन अवशेष दिखाई पड़ते है। इन्हें ही ‘पारसनाथ का किला’ कहते हैं। इस स्थान का नामकरण तेईसवें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ के…
ऋग्वेद मूलत: श्रमण ऋषभदेव प्रभावित कृति है! डा. स्नेहरानी जैन( सागर – म. प्र. ) विश्व के विद्वानों, इतिहासकारों एवं पुरातात्विकों के मतानुसार इस धरती पर ईसा से लगभग ५०००—३००० वर्ष पूर्व के काल में सभ्यता अत्यन्त उन्नति पर थी। मिस्र देश के पिरामिड और ममी, स्पिक्स, चीन की ममी, ग्रीक के अवशेष, बेबीलोन,…
श्रीधरदेव श्रीप्रभ नामक पर्वत पर ध्यान करते हुए प्रीतिंकर मुनिराज को केवलज्ञान प्रकट हो गया और देवों ने आकर गंधकुटी की रचना करके केवलज्ञान की पूजा की। ईशान स्वर्ग के श्रीधर देव ने भी अवधिज्ञान से जान लिया कि हमारे गुरु प्रीतिंकर मुनिराज को केवलज्ञान प्रकट हो चुका है, वह भी उत्तमोत्तम सामग्री लेकर पूजा…
सदा वर्धमान रहो लेकिन महावीर बनकर सन्मति के साथ लेखक— उपाध्याय अमरमुनि तीर्थंकर श्रमण महावीर के अनेक नाम हैं जिनसहस्रनाम में उनके हजार नाम है और हर नाम समाये हुए है। हर नाम में सूर्य का— सा प्रताप हैं, तेज है, प्रकाश है। उन सहस्रनामों में से तीन नामों को समझने की करेंगे। एक है…