खट्टे मीठे तीखे बोल * संत को गाय जैसा होना चाहिए। हाथी जैसा नहीं । गाय घास खाती है इसके बावजूद भी हमें दूध देती है। * लक्ष्मी पुण्याई से मिलती है। मेहनत से मिलती तो मजदूरों के पास क्यों नहीं ? बुद्धि से मिलती तो पण्डितों के पास क्यों नहीं ? * इह लोक…
बहुत ही पुण्य के उदय से किसी भी जीव में वैराग्य के अंकुर प्रस्फुटित होते है इसलिए उस जीव की भावनाओं का प्रयास न करके उसको धर्म मार्ग में सहयोगी बनना ही श्रेयस्कर एवं अपने लिए भी हितकारी होता हैं|
महापद्म चक्रवर्ती का संक्षिप्त परिचय जन्मस्थान – हस्तिनापुर लौकिकपद – महापद्म नवमें चक्रवर्ती पारमार्थिक पद – मुक्तिगमन महापद्म के प्रमुख दो पुत्र – पद्म और विष्णु कुमार पद्मराज – पिता के राज्य के संचालक राजा विष्णु कुमार – पिता के साथ दीक्षित, विक्रिया ऋद्धिधारी महामुनि
कर्मवाद का मनोवैज्ञानिक पहलू कर्मवाद भारतीय दर्शन का एक प्रतिष्ठित सिद्धांत है। उस पर लगभग सभी पुनर्जन्मवादी दर्शनों ने विमर्श प्रस्तुत किया है। ‘‘ पूरी तटस्थता के साथ कहा जा सकता है कि इस विषय का सर्वाधिक विकास जैन दर्शन में हुआ है। कर्मवाद मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। अत: कर्मशास्त्र को कर्म मनोविज्ञान ही…
काँच की बरनी और दो कप चाय जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी — जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा, काँच…
रूपकुण्डली (काव्य अट्ठाईस से सम्बन्धित कथा) यौवन का झोंका कभी-कभी स्वयं को बहा ले जाता है।विरले ही व्यक्ति इसमें प्रवेश करके सकुशल लौट पाते हैं।यौवन के मद में उन्मत्त होकर हस्ती अपनी हस्ती बतलाने के ध्येय से उल्टी मंजिल की ओर दौड़ लगाता है। यौवन के मद में मदहोश पुष्प-वृन्द जब खिलखिलाकर हँसते हैं, तो…
मांसाहार नैतिक व आध्यात्मिक पतन का कारण मनुष्य की भावना ही उसके कर्मो को प्रकाशित करती है । जिसमें अहिंसा दया परोपकार आदि की भावना है वह ऐसा कोई कर्म करना या कराना नहीं चाहेगा जिससे किसी अन्य प्राणी को पीड़ा पहुंचे । जो किसी प्राणी को कष्ट में देख कर द्रवित हो जाता है…