कषाय का वैज्ञानिक पक्ष सारांश व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की अशान्ति का मूलकारण कषाय है। कषाय से व्यक्ति का चिन्तन, वाणी और व्यवहार प्रभावित होता है। तदनुसार ही नाड़ीतन्त्र और क्रियातन्त्र भी सक्रिय होता है। परिणाम स्वरूप विविध शारीरिक, मानसिक व्याधियाँ जन्म लेती हैं। चिकित्सा विज्ञान और मनोविज्ञान भी मनोविकार और तनाव को अनेक रोगों…
बलदेव बलभद्र एवं श्रीकृष्ण नारायण भगवान नमिनाथ के बाद शौरीपुर के राजा अंधकवृष्टि की सुभद्रा महारानी के दश पुत्र हुए, जिनके नाम- (१) समुद्रविजय (२) अक्षोभ्य (३) स्तिमितसागर (४) हिमवान (५) विजय (६) अचल (७) धारण (८) पूरण (९) अभिचन्द्र और १०. वसुदेव तथा सुभद्रा महारानी के दो पुत्रियाँ थीं, जिनके कुंती और माद्री नाम…
अंतिम संस्कार में सामाजिक संगठन की भूमिका हमारे देश में प्रचलित परम्पराओं के अनुसार मनुष्य के जन्म से मृत्यु पर्यन्त सोलह संस्कार किये जाते हैं। हीनाधिक रूप में यह सभी सम्प्रदायों में माने जाते हैं, जिनमें अंतिम संस्कार सर्वत्र व्याप्त है। अंतिम संस्कार की पद्धतियाँ भले ही भिन्न हों, किन्तु उद्देश्य एक ही है, मृत…
वास्तु शास्त्र व फेगसुई के नौ सुनहरे नियम आठ दिशाओं, पांच तत्वों व पृथ्वी के चुम्बकीय प्रभाव तथा ब्रह्माण्ड में उपस्थित धनात्मक व ऋणात्मक ऊर्जा पर आधारित, उनके प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित वास्तुशास्त्र व फेगशुई के निम्नलिखित नियम मनुष्य के आम जीवन में सुख-शांति व समृद्धि देने में अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं – १. भवन के…
रसोई से जुड़ीं गलत बातें……. हर घर में खाना बनाने का अपना तरीका होता है, जिसे उस घर की सभी महिलाएं अपनाती जाती हैं। यही तरीका एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आगे बढ़ता जाता है। यही तरीके उस घर के नुस्खे बन जाते हैं, लेकिन उनका हर नुस्खा सही काम करे, ऐसा जरूरी तो…
श्री रयणसार सरस काव्य पद्यावली भगवान महावीर के पश्चात् उनके प्रथम गणधर गौतम स्वामी ने दिव्यध्वनि को ग्रहण कर उसे ग्रंथरूप में निबद्ध किया। उसी श्रुत परम्परा को अनेक आचार्यों ने आगे बढ़ाया। उनमें आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी का नाम ग्रंथ रचना में सर्वाधिक प्रचलित है। वे श्रमणसंस्कृति के उन्नायक कहे गये हैं। उनके अनेक नाम…
दिगम्बर वेश से ही मुक्ति परिग्रहत्याग महाव्रत में पूर्णतया संपूर्ण परिग्रहों का त्याग हो जाता है तथा आचेलक्य नामा मूलगुण में वस्त्र का सर्वथा त्याग हो जाने से दिगम्बर मुनि ही अट्ठाईस मूलगुणों के धारक साधु होते हैं। ‘इसी से स्त्री मुक्ति का भी निषेध हो जाता है।’ आर्ष ग्रन्थ में ‘‘सम्मामिच्छाइट्ठिअसंजदसम्माइट्ठिसंजदासंजदसंजदट्ठाणे णियमा पज्जत्तियाओ।।९३।।’’ मनुष्यिनियां…
मध्यम ग्रैवेयक में अहमिन्द्र सातवाँ भव -मंच पर सामूहिक प्रार्थना का दृश्य- (मध्यम ग्रैवेयक का दृश्य) -प्रथम दृश्य- (अहमिन्द्रों की सभा लगी हुई है, सभी अहमिन्द्र आज बहुत प्रसन्न हैं और आपस में चर्चा कर रहे हैं क्योंकि आज उनके यहाँ एक नये इन्द्र का जन्म होने वाला है।) अहमिन्द्र (१) – मध्यम ग्रैवेयक में…