परमागम के अनमोल मोती दर्शन पाहुड़ १. जो मिथ्यामती स्वयं सम्यक्दर्शन से भ्रष्ट होकर, दूसरे सम्यक्तवधारी पुरूषों से अपने चरण पड़वाते हैं। दर्शनधर्म से पतित वह पुरूष अगले जन्मों में लूले (लंगड़े) गूंगे होते हैं। उन्हें (दर्शन, ज्ञान, चारित्र से) बोधिज्ञान (केवलज्ञान) प्राप्त होना दुर्लभ है। २. जो पुरूष जानते हुए भी, लज्जा…
विनयांजलि लेखिका-श्रीमती मालती जैन, बसंत कुंज, दिल्ली ज्ञानमती माँ ! पूर्ण चन्द्रमा, इनकी कला निराली है,गुरु से चंदनामती मात ने, पूर्ण चाँदनी पा ली है।।टेक.।। एक दूसरे की पूरक हो, मावस से र्पूिणमा बनीं, जैसा मार्ग दिखाया, गुरु ने, बहन माधुरी वहीं चलीं। सम्यग्दर्शन—ज्ञान—चरित में, ज्ञानमती माँ जग दर्पण, बना दिया चंदनामती को,…
नियमसार -पं. शिखरचंद जैन ‘साहित्याचार्य’ (पूर्व प्राचार्य), सागर अध्यात्म दर्शन एवं मोक्षमार्ग विषयों से सम्पन्न ग्रंथराज नियमसार या नियम प्राभृत महर्षि कुन्दकुन्द की विशिष्ट कृति है। नियम अर्थात् रत्नत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र अथवा मोक्षमार्ग तथा मार्गफलरूप मोक्ष के स्वरूप का वर्णन कर श्रमणों को स्पष्ट रूप से दिशाबोध कराना इस ग्रंथ का मुख्य उद्देश्य है। इस…
महापुराण प्रवचन महापुराण प्रवचन श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह की अलका नगरी में राजा महाबल के जन्मदिवस की राजसभा में स्वयंबुद्ध मंत्री आगे कहते हैं कि राजन्! आप के इसी राजवंश में कभी एक राजा दण्ड रहते थे वे अपने पुत्र मणिमाली को राज्य देकर अंत:पुर में रहने…
व्यवहार काल के अन्तर्गत कुछ विशेष संख्याएँ आर्यखण्ड में नाना भेदों से संयुक्त जो काल प्रवर्तता है, उसके स्वरूप का वर्णन करते हैं। कालद्रव्य अनादिनिधन है, वर्तना उसका लक्षण माना गया है-जो द्रव्यों की पर्यायों को बदलने मे सहायक हो, उसे वर्तना कहते हैं। यह काल अत्यन्त सूक्ष्म परमाणु बराबर है और असंख्यात होने के…
नन्दीश्वर पर्व का महत्व गणिनी आर्यिका ज्ञानमती मध्यलोक में असंख्यात द्वीप-समुद्र हैं ” एक द्वीप को घेरकर समुद्र पुनः द्वीप ऐसी व्यवस्था होने से प्रथम जम्बूद्वीप को लेकर अंत में स्वयंभूरमण समुद्र है ” इस पहले जम्बूद्वीप के भारत क्षेत्र के आर्यखण्ड में ही वर्तमान में हम आप लोग रह रहे हैं ” इस…
जैन परम्परा में भक्ति की अवधारणा जैन परम्परा में ज्ञान की प्रधानता के साथ भक्ति का भी प्रमुख स्थान रहा है। आचार्य समन्तभद्र उसी को सुश्रद्धा कहते हैं जो ज्ञानपूर्वक की गई हो। उनके अनुसार ज्ञान के बल पर ही श्रद्धा सुश्रद्धा बन जाती है, अन्यथा वह अन्ध-श्रद्धा भर रह जाती है। उन्होंने ही दूसरे…
ज्योतिष बनाम कर्म सिद्धांत कहा जाता है……हमारे कर्मों का फल हमें ही भुगतना होता है। हर व्यक्ति के जीवन में पुण्य एवं पाप कर्मों का उदय आता है या यूं कहें……अच्छे और बुरे कर्म हर व्यक्ति के जीवन में प्रभाव डालते हैं। यही ज्योतिष शास्त्री भी कहता है। ‘कर्म निर्णायक हैं सुख और दुख का…