पर्यावरण और जैन धर्म प्रस्तुत आलेख में प्रदूषण रहित पर्यावरण, प्रदूषित पर्यावरण एवं पर्यावरण को प्रदूषण रहित बनाने में जैन धर्म के योगदान पर प्रकाश डाला गया है। आलेख प्राकृति, विकृति एवं संस्कृति इन तीन चरणों में निबद्ध है। प्रकृति— प्रकृति से तात्पर्य पर्यावरण की उस सन्तुलित एवं प्रदूषण रहित अवस्था से है, जो प्राणी…
प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की निर्वाणभूमि कैलाशपर्वत -प्रो. टीकमचंद जैन, नवीनशाहदरा, दिल्ली अनादिनिधन जैनधर्म में दो शाश्वत तीर्थक्षेत्र माने गये हैं-१. अयोध्या २. सम्मेदशिखर। अयोध्या तीर्थ को जहाँ अनन्तानन्त तीर्थंकरों की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है वहीं सम्मेदशिखर अनन्तानन्त तीर्थंकरों एवं मुनियों की निर्वाणभूमि के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में हुण्डावसर्पिणी कालदोषवश…
जैन हर्बल्स कंपनी-मुम्बई द्वारा उत्पादित अहिंसक प्रसाधन सामग्री अहिंसक पदार्थों की शृंखला में एक अन्य नाम है ‘वनौषधियों’ का, जिनका उत्पादन डॉ. उर्जिता जैन (एम.डी.)-मुम्बई द्वारा संचालित ‘वनौषधि केन्द्रों’ में किया जा रहा है। स्वास्थ्य एवं सौंदर्य के क्षेत्र में पूर्णतया वनस्पति आधारित इन अहिंसक पदार्थों की लिस्ट यहाँ प्रस्तुत है, ताकि सुधीपाठक इन प्रतिदिन…
जीव और अजीव का भेदज्ञान संसारी जीव के साथ अनादिकाल से कर्म और नोकर्म रूप पुद्गल-द्रव्य का संबंध चला आ रहा है। मिथ्यात्व दशा में यह जीव शरीर रूप नोकर्म की परिणति को आत्मा की परिणत मानकर उसमें अहंकार करता है- इस रूप ही मैं हूँ ऐसा मानता है अतः सर्वप्रथम शरीर से पृथक्ता सिद्ध…
जैन आगम में नव पदार्थ प्रस्तुति – गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी श्रीमते वर्धमानाय, नमो नमितविद्विषे । यज्ज्ञानान्तर्गतं भूत्वा, त्रैलोक्यं गोष्पदायते ।।१।। दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों में सात तत्त्व एवं नव पदार्थों के नाम प्रमुखता से लिये जाते हैं । इन्हीं सात तत्त्व-नव पदार्थों के ऊपर सम्पूर्ण सृष्टि व्यवस्था और मोक्ष व्यवस्था टिकी हुई है ।…
अष्टद्रव्य से पूजा भगवान की अष्टद्रव्य से पूजा करते समय चरणों में चंदन लगाना। फूल,फल, दीप, धूप वास्तविक लेना ऐसा विधान है प्रमाण देखिये-जल से पूजन करने का फल पसमइ रयं असेसं, जिणपयकमलेसु, दिण्णजलधारा।भिंगारणालणिग्गय, भवंतभिंगेहि कव्वुरिया।।प्रशमति रज: अशेषं, जिनपदकमलेषु दत्तजलधारा।भृंगारनालनिर्गता, भ्रमद्भृंगै: कर्बुरिता।।४७०।। अर्थ- सबसे पहले जल की धारा देकर भगवान की पूजा करनी चाहिए। वह…
जिनागम में आहारप्रत्याख्यान विधि (जैन साधुओं के लिए) आहारचर्या कब और कैसे? साधु मंदिर में जाकर मध्यान्ह देववन्दना और गुरु वन्दना करके आहार को निकलते हैं ऐसा मूलाचार टीका, अनगार धर्मामृत आदि में विधान है फिर भी आजकल ९ बजे से लेकर ११ बजे तक के काल में आहार को निकलते हैं। संघ के…