श्रमण—संस्कृति की अनमोल विरासत : जैन—पाण्डुलिपियाँ प्रतिभा—मूर्ति प्रो. डॉ. हीरालाल जी के साथ मुझे राजकीय प्राकृत जैन विद्या एवं अहिंसा शोध संस्थान , वैशाली (बिहार) में लगभग ५ वर्षों तक एक साथ रहने का सौभाग्य मिला था वहाँ वे डाइरेक्टर थे और मैं लाईब्रेरियन । प्रतिदिन मेरा संध्या कालीन भ्रमण उनके साथ ही होता था।…
सम्यक दर्शनचंद्रिका-स्वर्ण चित्रों से युक्त एक दुर्लभ अप्रकाशित पाण्डुलिपि —सुरेखा मिश्रा एवं अनुपम जैन सारांश सम्यक्दर्शनचंद्रिका आचार्य उमास्वामी द्वारा लिखित तत्वार्थ सूत्र (अपरनाम मोक्षशास्त्र) की टीका है। आचार्य उमास्वामी दिगम्बर जैन परंपरा के द्वितीय शताब्दी के आचार्य हैं। सम्प्रति तत्वार्थ सूत्र के ऊपर सर्वाधिक लगभग ३८ टीकायें उपलब्ध है। सम्यव्दर्शनचंद्रिका इन्हीं में से एक अप्रकाशित…
महामंत्र का प्रभाव पात्रानुक्रमणिकाधनपाल उज्जयिनी का राजा धनदत्त उज्जयिनी का सेठ दृढ़सूर्य चोर बसंतसेना वेश्या वृद्ध स्वर्ग का देव मंत्रीगण कर्मचारीगण (दृढ़सूर्य चोर वेश्या के चंगुल में फसकर रानी का हार चुराता है और पकड़े जाने पर फाँसी पर लटकाया जाता है। उस समय धनदत्त सेठ से णमोकार मंत्र प्राप्त कर उसे पढ़ते हुए स्वर्ग…
आहारदान महिमा की कहानी भोगवती नगरी के राजा कामवृष्टि की रानी मिष्टदाना के गर्भ में पापी बालक के आते ही राजा की मृत्यु हो गई और राजा के नौकर सुकृतपुण्य के हाथ में राज्य चला गया। माता ने बालक को पुण्यहीन समझकर उसका नाम ‘अकृतपुण्य’ रख दिया और परायी मजदूरी करके उसका पालन किया। किसी…
जैनशासन में कर्म सिद्धान्त सुदर्शन—गुरूजी! कर्म किसे कहते हैं ? गुरूजी—जिसके द्वारा जीव परतंत्र किया जाता है वह कर्म है। इस कर्म के निमित्त से ही यह जीव इस संसार में अनेकों शारीरिक, मानसिक और आगंतुक दु:खों को भोग रहा है। सुदर्शन—इस कर्म का सम्बन्ध जीव के साथ कब से हुआ है ? गुरूजी—बेटा! जीव…
ग्वालियर (म.प्र.)में है पार्श्वनाथ की सबसे बड़ी पद्मासन प्रतिमा -आर्यिका चन्दनामती माताजी स्थिति और मार्ग— ग्वालियर सेण्ट्रल रेलवे की मुख्य लाइन पर आगरा-झाँसी के मध्य में आगरा से ११८ कि.मी. और झाँसी से ९७ कि.मी. दूर एक प्रसिद्ध शहर है। यह एक समय ब्रिटिश शासनकाल में भारत की रियासतों में चौथे नम्बर पर था और…