04. गृहस्थ के अष्ट मूलगुण
अट्ठाईस मूलगुण व्रत व्रतविधि— साधु के २८ मूलगुणों के २८ व्रत किये जाते हैं। इन व्रतों में उपवास या एकाशन जैसी भी शक्ति हो, कर सकते हैं। समुच्चय मंत्र-ॐ ह्रीं सकलचारित्रलाभाय अष्टाविंशतिमूलगुणेभ्यो नम:। पृथक्-पृथक् व्रत के मंत्र— १. ॐ ह्रीं सकलचारित्रलाभाय अहिंसामहाव्रताय नम:। २. ॐ ह्रीं सकलचारित्रलाभाय सत्यमहाव्रताय नम:। ३. ॐ ह्रीं सकलचारित्रलाभाय अचौर्यमहाव्रताय नम:।…
जैन परम्परा और कला में सारनाथ— वाराणसी डॉ. शान्ति स्वरूप सिन्हा बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ और वाराणसी नगर दोनों का जैन परम्परा एवं कला में महत्व रहा है। वाराणसी का उल्लेख विभिन्न जैन ग्रन्थों यथा—प्रज्ञापना, ज्ञाताधर्मकथा उत्तराध्ययनचूर्णि, कल्पसूत्र, उपासकदशांग, आवश्यकनिर्युक्ति, निरयावलिका, अन्तकृतदशासत्येन्द्र मोहन जैन, दिगम्बर जैन श्रीपार्श्र्वनाथ जन्मभूमि मन्दिर, भेलूपुर, वाराणसी का ऐतिहासिक…
आर्यिकाएँ यद्यपि उपचार से महाव्रती है फिर भी वे अट्ठाईस मूलगुणों को धारण करती हैं,साड़ी मात्र परिग्रह और बैठकर आहार करना यह उनका मूलगुण है ,आर्यिकाओं की समस्त चर्या मुनि के सामान होती है
चौबीस तीर्थंकर गणधर व्रत चौबीस तीर्थंकरों के चौदह सौ उनसठ गणधर हैं। अन्य ग्रंथों में चौदह सौ बावन माने हैं। इन चौबीसों तीर्थंकरों के एक-एक प्रमुख गणधरों के नाम प्रसिद्ध हैं। उनके ये २४ व्रत हैं। इन व्रतों के प्रभाव से अंतरंग ऋद्धियाँ एवं बहिरंग ऋद्धि-सुख-संपत्ति-सन्तति आदि को प्राप्त करते हैं एवं रोग, शोक, दरिद्रता…
जीवसमास आदि जिनके द्वारा अनेक जीव संग्रह किये जायें, उन्हें जीवसमास कहते हैं। जीवसमास के चौदह भेद हैं-एकेन्द्रिय के बादर और सूक्ष्म ऐसे दो भेद, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय के सैनी-असैनी ऐसे दो भेद, इस प्रकार सात भेद हो जाते हैं। इन्हें पर्याप्त–अपर्याप्त ऐसे दो से गुणा करने पर जीवसमास के चौदह भेद हो…