५ – मैनासुन्दरी द्वारा भक्तिभाव से कुष्ठी पति की सेवा मैनासुंदरी अपने पति की सेवा में अहर्निश लगी रहती थी। घाव धोकर औषधि लगाती, पट्टी बाँधती और प्रकृति के अनुकूल भोजन कराती थी। वह रंचमात्र भी ग्लानि नहीं करती थी। कभी-कभी अनेक तत्त्व चर्चा और धर्म कथाओें के द्वारा पति का मन अनुरंजित किया करती…
भ्रान्तियों का निराकरण द्रौपदी के क्या पाँच पति थे ? प्रश्न – द्रौपदी के क्या पाँच पति थे ? उत्तर – जैन ग्रंथों के अनुसार-पांडवपुराण, हरिवंशपुराण आदि ग्रंथों के अनुसार द्रौपदी के स्वयंवर में अर्जुन ने चन्द्रवेध किया था, तब द्रौपदी ने केवल अर्जुन के गले में वरमाला डाली थी, उस समय हवा के झोंके…
लवण समुद्र में जिनमंदिर (त्रिलोकभास्कर से) समुद्र के मध्य में पाताल लवण समुद्र के मध्य भाग में चारों ओर उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य ऐसे १००८ पाताल हैं। ज्येष्ठ पाताल ४, मध्यम ४ और जघन्य १००० हैं। उत्कृष्ट पाताल चार दिशाओं में ४ हैं। मध्यम पाताल ४ विदिशाओं में ४ एवं उत्कृष्ट मध्यम के मध्य में…
भवनवासी व व्यंतरदेवों के आवास चित्ते वइरे वेरुलि लोहियअंके मसारगल्ले य। गोमज्जए पवाले य तह जोइरसेत्ति य१।।११७।। णवमे अंजणे वुत्ते दसमे अंजणमूलये। अंके एक्कारसे वुत्ते फलिहंके बारसेत्ति य।।११८।। चंदणे वच्चगे चावि बहुले पण्णारसेत्ति य। सिलामए वि अक्खाए सोलसे पुढवी तले।।११९।। सोलस चेव सहस्सा रयणाइं होंति चेव बोद्धव्वा। तलउवरिमम्मि भागे जेण दु रयणप्पभा णाम।।१२०।। अवसेसा पुढवीओ…
व्यंतरदेवों के जिनमंदिर (तिलोयपण्णत्ति से) चोत्तीसादिसएहिं विम्हयजणणं सुरिंदपहुदीणं। णमिऊण सीदलजिणं वेंतरलोयं णिरूवेमा१।।१।। रज्जुकदी गुणिदव्वा णवणउदिसहरसअधियलक्खेणं। तम्मज्झे तिवियप्पा वेंतरदेवाण होंति पुरा।।५।। ४९। १,९९०००। भवणं भवणपुराणिं आवासा इय भवंति तिवियप्पा। जिणमुहकमलविणिग्गदवेंतरपण्णत्तिणामाए।।६।। रयणप्पहपुढवीए भवणाणिं दीवउवहिउवरिम्मि। भवणपुराणिं दहगिरिपहुदीणं उवरि आवासा।।७।। बारससहस्सजोयणपरिमाणं होदि जेट्ठभवणाणं। पत्ते विक्खंभा तिण्णि सयाणं च बहलत्तं।।८।। १२०००।३००।। पणुवीस जोयणाणिं रुंदपमाणं जहण्णभवणाणं। पत्ते बहलत्तं तिचउब्भागप्पमाणं च।।९।। अहवा…
व्यंतर देवों के चैत्यवृक्ष (लोकविभाग से) तेिंस असोयचंपयणागा तुंबुरु वडो य कंटतरू। तुलसी कडंबणामा चेत्ततरू होंति हु कमेण१।।७।। कदम्बस्तु पिशाचानां राक्षसाः कण्टकद्रुमाः। भूतानां तुलसीचैत्यं यक्षाणां च वटो भवेत्।।५५।। किंनराणामशोकः स्वािंत्कपुरुषेषु च चम्पकः। महोरगाणां नागोऽपि गन्धर्वाणां च तुम्बरुः।।५६।। पृथिवीपरिणामास्ते आयागनियुतद्रुमाः। जम्बूमानार्धमानाश्च र्कीिततास्ते प्रमाणतः।।५७।। दिव्यरत्नविचित्रं च छत्रत्रितयमेकशः। शुभध्वजपताकास्ते विभान्त्यायागमाश्रिताः।।५८।। तोरणानि च चत्वारि नानारत्नमयानि च। आसक्तमाल्यधामानि चैत्यानां हि…
व्यंतर देवों के चैत्यवृक्ष किंणरकिंपुरुसादियवेंतरदेवाण अट्ठभेयाणं। तिवियप्पणिलयपुरदो चेत्तदुमा होंति एक्केक्का।।२७।। कमसो असोयचंपयणागडुमतुंबुरू य णग्गोहे। कंटयरुक्खो तुलसी कदंब विदओ त्ति ते अट्ठं।।२८।। ते सव्वे चेत्ततरू भावणसुरचेतरुक्खसारिच्छा। जीउप्पत्तिलयाणं हेऊ पुढवीसरूवा य।।२९।। मूलम्मि चउदिसासुं चेत्ततरूणं जिणिंदपडिमाओ। चत्तारो चत्तारो चउतोरणसोहमाणाओ।।३०।। पल्लंकआसणाओ सपाडिहेराओ रयणमइयाओ। दंसणमेत्तणिवारिददुरिताओ देंतु वो मोक्खं।।३१।। संखेज्जजोयणाणिं संखेज्जाऊ य एसमयेणं। जादि असंखेज्जाणिं ताणि असंखेज्जआऊ य।।९७।। अट्ठाण वि पत्तेक्कं…
इन्द्रों के यहां ओलगशाला के आगे चैत्यवृक्ष इंदाणं चिण्हाणि तिरीटमेव मणिखजिदं। पडिइंदादिचउण्हं चिण्हं मउडं मुणेदव्वा।।१३४।। ओलगसालापुरदो चेत्तदुमा होंति विविहरयणमया। असुरप्पहुदिकुलाणं ते चिण्हाइं इमा होंति।।१३५।। अस्सत्थसत्तवण्णा संमलजुबू य वेतसकडंबा। तह पीयंगू सिरसा पलासरायद्दुमा कमसो।।१३६।। चेत्तदुमामूलेसुं पत्ते चउदिसासु चेट्ठंते। पंच जिणिंदप्पडिमा पलियंकठिदी परमरम्मा।।१३७।। ‘ पडिमाणं अग्गेसुं रयणत्थंभा हवंति वीस फुडं। पडिमापीढसरिच्छा पीडा थंभाण णादव्वा।।१३८।। एक्केक्कमाणथंभे अट्ठावीसं जिणिंदपडिमाओ।…