द्वात्रिंशतिका का हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा आचार्य रयणसागर जी महाराज चौपाई छंद प्राणिमात्र में मित्रपना हो, गुणिजन में आनन्द रहे। दीन दुखी जीवों में मेरा, करूणा भाव अपार बहे।। जो विपरीत आचरण वाले, उनके प्रति समभाव धरूँ। हे देवों के देव जिनेश्वर मैं ऐसे नित सुगुण वरू।।१।। अनन्त आत्मा शक्तिवान है दोष रहित होने पर ये।...