जिनवाणी!
जिनवाणी- जिनेन्द्र भगवान की वाणी को जिनवाणी कहते हैं
न्यायशास्त्र और जैन न्याय -सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री न्यायशास्त्र को तर्वशास्त्र, हेतुविद्या और प्रमाणशास्त्र भी कहते हैं, किन्तु इसका प्राचीन नाम आन्वीक्षिका है। कौटिल्य ने (३२७ ई. पूर्व) अपने अर्थशास्त्र में आन्वीक्षिका, त्रयी, वार्ता और दण्डनीति, इन चार विद्याओं का निर्देश किया है और लिखा है कि त्रयी में धर्म-अधर्म का, वार्ता में अर्थ-अनर्थ का…
रामचरित्र – Ramacaritra Name of a religious book written by Brahma Jindas ब्रह्म जिनदास कृत एक ग्रंथ, समय – 14 वी शताब्दी
याचनी भाषा – अनुभय भाशा का एक भेद, इस तरह के प्रार्थना पूर्ण वचनों को कहना। Yacani Bhasa- Requesting language (pertaining to some material)
रत्ननंदि – नंदीसंध बलात्कार गण में वीरनंदी न 1 के षिश्य व माणिक्यनंदी न 1 के गुरू। समय ई 639 से 668 Ratnanadi-Name of the disciple of Virnandi-1 and preceptor of Manikyanandi-1
शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर दिगम्बर जैनों का अनादिनिधन शाश्वत सिद्धक्षेत्र है। जहाँ से अनन्त तीर्थंकरों ने मोक्षप्राप्त किया है और अनन्तानन्त भव्य जीवों ने भी तपस्या करके इस पर्वतराज से निर्वाणधाम को प्राप्त किया है इसीलिए इसे सिद्धक्षेत्र के रूप में सदा से पूजने की परम्परा रही है। जैन समाज में जन्म लेने…
षट् आवश्यक (श्रावक) – Sat Aavashyaka (Shraavaka). Six essential duties of Jaina followers. श्रावक के 6 आवश्यक कर्त्तव्य- दान, पूजा, गुरु की सेवा, स्वाध्याय, संयम और तप “