निश्चिंता एक सेठ के पास चांदी के फरमे में एक अलार्म घड़ी थी। इस घड़ी को वह हमेशा एक ही स्थान पर एक ही अल्मारी में रखे रखता था। एक दिन उसका एक नौकर उस कमरे की साफ सफाई कर रहा था। साफ सफाई के दौरान नौकर से घड़ी गिर कर टूट गई। नौकर घबरा…
कौरव-पांडव मिलन पांडवों का अज्ञात भ्रमण इधर घूमते-घूमते ये पांडव लोग चंपापुरी में पहुँच गये। अनेकों चेष्टाओं से मनोविनोद करते हुये वहाँ घूम रहे थे कि अकस्मात् एक बलवान हाथी आलान स्तम्भ तोड़कर नगर को व्याकुल कर रहा था। तब भीम ने उस हाथी को वश में करके नगर का वातावरण शान्त किया, आगे…
एक वृक्ष सात डालियाँ ‘‘एक वृक्ष सात डालियाँ’’ पुस्तक पूज्य आर्यिकारत्न श्री अभयमती माताजी की मौलिक कृति है। इसमें रत्नत्रयरूपी एक कल्पवृक्ष बनाकर उसमें सात डालियाँ निकाली हैं जो कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत एवं परिग्रहपरिमाणव्रत रूप बताई है। एक दीनानाथ नामक लकड़हारे के माध्यम से विषय वस्तु को सुन्दर अलंकार रूप में…
[[श्रेणी:कुन्दकुन्द_वाणी]] मुनिधर्म (सराग चारित्र) संकलनकर्त्री- गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी हिन्दी पद्यानुवादकर्त्री- आर्यिका चंदनामती बारह अनुप्रेक्षा अद् ध्रुवमसरणमेगत्त-मण्णसंसारलोगमसुचित्तं। आसवसंवर णिज्जर, धम्मं बोिंह च चितेज्जो।।।। (द्वादशानुप्रेक्षा गाथा-२) -शंभु छन्द- अध्रुव अशरण एकत्व और, अन्यत्व तथा संसार लोक। अशुचित्व तथा आश्रव संवर, निर्जरा धर्म अरु ज्ञान बोध।। इन द्वादश अनुप्रेक्षाओं का, चिंतन साधु जो करते हैं। उनकी आत्मा…
विनम्रता आज चारों और विघटन और अनुशासनहीनता का वातावरण दिखाई दे रहा है इस कारण से मनुष्य का आंतरिक विश्वास डगमगाने लगता है। भौतिकता की अंधी दौड़ में सम्मिलत हुए आज के युग के मनुष्य की दृष्टि अहंकारी हो गई है।मनुष्य ने विनम्रता का दामन छोड़ दिया है। आज मनुष्य को सभी साधन और सुख…
गौतम गणधर स्वामी सार में सार ‘‘जिस दिन भगवान महावीर सिद्ध हुए उसी दिन गौतम गणधर केवलज्ञान को प्राप्त हुए। ये बारह वर्षों तक केवलीपद में रहकर सिद्धपद को प्राप्त हुए उसी दिन सुधर्मस्वामी केवली हुए, ये भी बारह वर्षों तक केवली रहकर मुक्त हुए तब जम्बूस्वामी केवली हुए, ये अड़तीस वर्षों तक केवली रहे…
ध्यान माधुरी-माताजी! आज ध्यान की चर्चा जहाँ-तहाँ चलती रहती है, वह ध्यान क्या है? और उसके कौन-कौन से भेद हैं? माताजी-एकाग्रचिन्तानिरोध होना अर्थात् किसी एक विषय पर मन का स्थिर हो जाना ध्यान है। यह ध्यान उत्तम संहनन वाले मनुष्य के अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त तक ही हो सकता है। इस ध्यान के आर्त, रौद्र,…
नि:शल्योव्रती सुगंधबाला-जीजी! शल्य किसे कहते हैं? मालती-‘‘शल्यमिव शल्य’’ जो शल्य-कांटे के समान चुभती रहे-दु:ख देवे, वह शल्य है। महाशास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र में ‘‘नि:शल्यो व्रती’’ यह सूत्र कहा है। इसका विशेष स्पष्टीकरण सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थराजवार्तिक आदि ग्रंथों में किया गया है। सर्वार्थसिद्धि में कहते हैं-‘‘शृणाति हिनस्तीति शल्यम्। शरीरानुप्रवेशिकांडादि-प्रहरणं शल्यमिव शल्यं यथा तत्प्राणिनोबाधाकारं तथा शारीरमानसबाधा-हेतुत्वात्कर्मोदयविकार: शल्यमित्युपचर्यते। तत्त्रिविधं मायाशल्यं,…