02. अनादिनिधन जैनधर्म
२. अनादिनिधन जैनधर्म नमो नम: सत्त्वहितंकराय, वीराय भव्याम्बुजभास्कराय। अनंतलोकाय सुरार्चिताय, देवाधिदेवाय नमो जिनाय।। जैनधर्म के ग्रंथों में लोक को-संसार को अनादिनिधन माना है। जैसे कि- ‘लोगो अकिट्ठिमो खलु अणाइणिहणो सहावणिव्वत्तो।१’’ इसी लोक में मध्यलोक में ‘‘जम्बूद्वीप’’ नाम से प्रथम द्वीप है। इसके अन्तर्गत भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र के आर्यखण्ड में षट्काल परिवर्तन होता रहता…