छह कुलाचलों के सरोवर (जम्बूद्वीपपण्णत्ति ग्रंथ से) पर्वतों पर जिन मंदिर गिरिवरकूडेसु तहा गिरिवरसिहरेसु गिरिवरणगेसु। होंति सुराणं पुरवर जिणभवणविहूसिया रम्मा।।६७।। विक्खंभायामेहि य उच्छेहेहि य हवंति जावदिया। वेदड्ढणगम्मि तहा तावदिया अंबुजेसु गिहा।।६८।। पउमो य महापउमो तिगिंछवरकेसरी य पुंडरिओ। तह य महापुंडरिओ महादहा होंति अचलेसु।।६९।। दहकुंडणगणदीण य वणदीवपुराण कूडसेढीणं। तडवेदी णिद्दिट्ठा मणितोरणमंडिया दिव्वा।।७०।। सेलाणं उच्छेहो दसगुणिद दहाण…
तीन चौबीसी पूजा स्थापना गीता छंद मंगलमयी सब लोक में, उत्तम शरण दाता तुम्हीं। वर तीन चौबीसी जिनेश्वर, तीर्थकर्ता मान्य ही।। इस भरत में ये भूत संप्रति, भावि तीर्थंकर कहे। आह्वान करके जो जजें, वे स्वात्मसुख संपति लहें।।१।। ॐ ह्रीं भूतवर्तमानभविष्यत्-द्वासप्ततितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं भूतवर्तमानभविष्यत्-द्वासप्ततितीर्थंकरसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ…
सप्तऋषियों का प्रभाव (ऋद्धियों की महिमा-मथुरा में महामारी प्रकोप, सप्तऋषि के चातुर्मास से कष्ट निवारण) राजा मधुसुन्दर का वह दिव्य शूलरत्न यद्यपि अमोघ था फिर भी शत्रुघ्न के पास वह निष्फल हो गया, उसका तेज छूट गया और वह अपनी विधि से च्युत…
गणधरवलय मंत्र अमृतर्विषणी टीका बृहत्प्रतिक्रमण अर्थात् पाक्षिक प्रतिक्रमण जो कि मुनियों एवं आर्यि्काओ के लिए कहा गया है। उसकी टीका करते श्री प्रभाचंद्राचार्य कहते हैं- दोषा दैवसिकप्रतिक्रमणतो नश्यन्ति ये नृणां। तन्नाशार्थमिमां ब्रवीति गणभृच्छ्रीगौतमो निर्मलाम्।। सूक्ष्मस्थूलसमस्तदोषहननीं सर्वात्मशुद्धिप्रदां। यस्मान्नास्ति बृहत्प्रतिक्रमणतस्तन्नाशहेतु: पर:।।१।। श्रीगौतमस्वामी दैवसिकादिप्रतिक्रमणादिभिर्निराकर्तुमशक्यानां दोषाणां निराकरणार्थं बृहत्प्रतिक्रमणलक्षणमुपायं विदधानस्तदादौ मंगलाद्यर्थमिष्ट-देवताविशेषं नमस्कुर्वन्नाह१— ‘‘णमो जिणाणमित्यादि’’। मनुष्यों के अर्थात् मुनि—आर्यिका पूज्य संयमियों…
मुनि विष्णु्कुमार की कथा (विक्रिया ऋद्धि की महिमा) (१) दिगम्बर गुरु श्री अकंंपन आचार्य महाराज शहर और ग्रामों में विहार करते हुए उज्जयिनी नगरी के उद्यान में जाकर ठहर जाते हैं। उनके साथ सात सौ मुनियों का विशाल संघ है। इतने बड़े संघ के अधिनायक आचार्य अपने निमित्तज्ञान से इस बात को जान लेते…
भगवान बाहुबली चरित (आदिपुराण में श्री बाहुबली के ध्यानावस्था में मन:पर्ययज्ञान एवं अनेक ऋद्धियाँ मानी है।) —चौबोल छंद— श्री जिन श्रुत गुरु वंदन करके, वृषभदेव को नमन करूँ। गुणमणि पूज्य बाहुबलि प्रभु के, चरण कमल का ध्यान करूँ।। श्री श्रुतकेवलि भद्रबाहु मुनि, चन्द्रगुप्त नेमीन्दु नमूँ। शांति सिंधु गणि वीर सिंधु नमि, बाहुबली शुभ चरित कहूँ।।१।।…