निर्दोष सप्तमी व्रत का स्वरूप एवं विधि निर्दोष सप्तमी व्रत की विधि निर्दोष सप्तमी व्रत भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को करना चाहिए। इस व्रत में षष्ठी तिथि से संयम ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत की समस्त विधि मुकुटसप्तमी के ही समान है, अंतर इतना है कि इसमें रात भी जागरणपूर्वक व्यतीत की जाती है अथवा रात…
देव-शास्त्र-गुरु पूजा अडिल्ल छन्द प्रथम देव अरिहंत सुश्रुत सिद्धान्त जू, गुरु निग्र्रन्थ महन्त मुकतिपुर पन्थ जू, तीन रतन जग माँहि सो ये भवि ध्याइये, तिनकी भक्तिप्रसाद परमपद पाइये।। दोहा पूजों पद अरिहंत के, पूजों गुरुपद सार। पूजों देवी सरस्वती, नितप्रति अष्टप्रकार।।१।। ॐ ह्रीं देव-शास्त्र-गुरु-समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
तेरहद्वीप पूजा तेरहद्वीप जिनालय व्रत (मध्यलोक जिनालय व्रत) एवम तेरहद्वीप व्रत (लघु) दोहा स्वयंसिद्ध ये द्वीप हैं, तेरहद्वीप महान। सब द्वीपों में जिनभवन, अनुपम रत्न निधान।।१।। चउ शत अट्ठावन यहाँ, जिनमंदिर अभिराम। तीर्थंकर जिन केवली, साधु शील गुण खान।।२।। इन सब की पूजा करूँ, आत्मशुद्धि के हेतु। जिन पूजा चिंतामणी, मन चिंतित फल देत।।३।। …
तीर्थंकर पंचकल्याणक पूजा तीर्थंकर पंचकल्याणक तिथि व्रत में अथ स्थापना गीता छंद वर पंचकल्याणक जगत् में, सर्वजन से वंद्य हैं। त्रैलोक्य में अति क्षोभ कर, सुर इन्द्रगण अभिनंद्य हैं।। मैं पंचमी गति प्राप्त हेतू, पंचकल्याणक जजूँ। आह्वाननादी विधि करूँ, संपूर्ण कल्याणक भजूँ।।१।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं…
तीर्थंकर जन्मभूमि तीर्थ पूजा स्थापना (शंभु छन्द) तीर्थंकर श्री ऋषभदेव से, महावीर तक करूँ नमन। चौबीसों जिनवर की पावन, जन्मभूमियों को वन्दन।। जैनी संस्कृति…
श्री शांतिसागर जी महाराज की पूजन तर्ज – झुमका गिरा रे …. पूजन करो रे, श्रीशान्तिसिन्धु आचार्य प्रवर की, पूजन करो रे-२। भारतवसुन्धरा ने जब, मुनियों के दर्श नहिं पाये…
ज्येष्ठ जिनवर पूजा ज्येष्ठ जिनवर व्रत में नाभिराय कुल मण्डन मरुदेवी उर जननं। प्रथम तीर्थंकर गाये सु स्वामी आदि जिनं।। ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी। सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।१।। जुगला धर्म निवारण स्वामी ऋषभ जिनम्। संसार सागर तारण सेविय सुर गहनं।। ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी। सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र…
जिनसहस्रनाम पूजा अथ स्थापना शंभु छंद जिनवर की प्रथम दिव्य देशना, नंतर सुरपति अति भक्ती से। निज विकसित नेत्र हजार बना, प्रभु को अवलोकें विक्रिय से।। प्रभु एक हजार आठ लक्षणधारी सब भाषा के स्वामी। शुभ एक हजार आठ नामों से, स्तुति करता वह शिवगामी।। दोहा एक हजार सु आठ ये, श्री…
जिनगुण संपत्ति पूजा स्थापना गीता छंद जैनेन्द्र गुण की संपदा के, नाम त्रेसठ मुख्य हैं। सोलह सुकारण भावना, वर प्रातिहार्य जु अष्ट हैं।। चौंतीस अतिशय पंचकल्याणक सुत्रेसठ जानिये। श्री जिनगुणों की थापना कर, पूजते सुख मानिए।।१।। ॐ ह्रीं जिनगुणसंपत्तिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं जिनगुणसंपत्तिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ:…