पद्मावती पूजा जगजीवन को शरण, हरण भ्रम तिमिर दिवाकर। गुण अनन्त भगवन्त कंथ, शिवरमणि सुखाकर।। किशनबदन लजिमदन, कोटिशशिसदन विराजै। उरगलच्छन पगधरण, कमठ मद खण्डन साजैं।। अनन्त चतुष्टय लक्षिकर, भूषित पारस देव। त्रिविध नमौं शिरनायके, करूँ पद्मावती सेव।।१।। दोहा आह्वानन बहुविधि करों, इस थल तिष्ठो आय। सत्य मात पद्मावती, दर्शन दीजो धाय।। ॐ ह्रीं श्रीं…
देवी पद्मावती ने जैन न्याय को समृद्ध बनाया प्रस्तुति – आचार्य श्री विद्यानन्दि मुनि महाराज अन्यथानुपपन्नत्वं, यत्र तत्र त्रयेण किम्।नान्याथानुपपन्नत्वं, यत्र तत्र त्रयेण किम्। -(धवला, आचार्य वीरसेन, पु.१३, पृष्ठ २४६) जहाँ अन्यथानुपपत्ति या अविनाभाव है वहाँ त्रैरूप्य मानने से कोई लाभ नहीं, जहाँ अन्यथानुपपत्ति नहीं है वहाँ भी त्रैरूप्य माना व्यर्थ है । यथा-‘पर्वत अग्निवाला…
चक्रेश्वरी माता की पूजन रचयित्री-ब्र.कु. सारिका जैन (संघस्थ) स्थापना तर्ज-दीक्षा लेकर………. चलो सभी मिल पूजा करने, श्री चक्रेश्वरी माता की। ऋषभदेव की शासन देवी, महिमाशाली माता की।। इनका आराधन करने से, भक्तों के सब कष्ट भगें। जो इनकी पूजा करते हैं, उनके दुःख दारिद्र नशें।। आह्वानन स्थापन करके, करें अर्चना माता की-करें अर्चना…
अनावृतयक्ष पूजा मेरोरीशानभागे कुरुषु मणिमयस्योत्तरेषु स्थितस्य। श्रीजंबूभूरुहस्य स्थितिजुषमनिशं पूर्वशाखास्थसौधे।। शंखं चक्रं च कुंडिं दधतमुरुकरैररक्षमालां च कृष्णंष्ट्वं। पक्षीन्द्रारुढमस्या भवदिशि विधिनानावृतेन्द्रं यजामि।। ओं दशदिशाधिनाथं त्रैलोक्यदंडनायकं जंबूद्वीपाधिपतिं गरुडपृष्ठमारूढं स्निग्धभृंगांजनाभमक्षसूत्रकमंडलुव्यग्रहस्तं चतुर्भुजं शंखचक्रविधृतभुजादंडं यक्षिणीसहितं सपरिजन-सपरिवारमनावृतं देवमाव्हानयामहे स्वाहा।। हे अनावृत यक्ष! आगच्छ २ संवौषट्०।।पुष्पांजलिं।। अनावृताय स्वाहा।। अनावृतपरिजनाय स्वाहा। अनावृतानुचराय स्वाहा।। अनावृतमहतराय स्वाहा।। अग्नये स्वाहा।। अनिलाय स्वाहा।। वरुणाय स्वाहा।। प्रजापतये…
मेरे घर जिनवर आए हैं तर्ज—चाँद मेरे आ जा रे……….. मेरे घर जिनवर आए हैं-२ तीर्थंकर श्री शांतिनाथ मुनि बनकर आए हैं।।मेरे.।।टेक.।। छह खण्ड धरा को जीता तो चक्रवर्ति कहलाए। वैराग्य हुआ तो सब कुछ तज महामुनी कहलाए।। मेरे घर जिनवर आए हैं। सिद्धं नम: कह दीक्षा ग्रहण कर योगी कहाए…