भजन-४ चतुर्थ अध्याय हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।। तत्त्वार्थसूत्र अध्याय चतुर्थ में, उर्ध्वलोक का वर्णन है। देवों के चार भेद एवं, उनकी स्थिति का वर्णन है।। वे भवनवासि व्यंतर ज्योतिष, वैमानिक नाम से कहलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव…
भजन-३ तृतीय अध्याय हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।। आचार्य उमास्वामी तृतीय, अध्याय में ऐसा कहते हैं। पापों के करण जीव नरक, आदिक दु:खों को सहते हैं।। हैं मध्यलोक में मनुज और, तिर्यंच जीव यह बतलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि…
गौरवमय हो यह उत्सव पीछीधारी सभी साधुओं में, माता हैं सबसे प्राचीन।। ज्ञान, ध्यान और सामायिक में, रहती हैं वे हरदम लीन।। पाश्र्वनाथ का तृतीय सहस्राब्दि, महोत्सव भी मनवाया है। वाराणसि नगरी में सबने, उत्सव खूब मनाया है।।१।। एक-एक क्षण का सदुपयोग, कर मानव महान बन जाता है। माँ का कहना है बीता क्षण, वापस…
भजन-५ पंचम अध्याय हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।। है जीव से भिन्न अजीव तत्व, जो पाँच भेद युत कहलाता। पुद्गल नभ धर्म अधर्म काल से, उसको पहचाना जाता।। इनमें से बस पुद्गल मूर्तिक, अरु पाँच अमूर्तिक कहलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु,…
माँ! चरणों में तुम्हें नमस्ते……. ज्ञाननन्दनी वरदनन्दनी ज्ञानमती माँ तुम्हें नमस्ते।।१।। आशा हो जन-जन की तुम माँ अत: तुम्हें सविनम्र नमस्ते।।२।। नारी पद की पराकाष्ठा तुमने धारी तुम्हें नमस्ते।।३।। गगन चुम्बि चारित अवधारी करते लाखों भक्त नमस्ते।।४।। ज्ञानी-ध्यानी हो विज्ञानी रत्नत्रय की मूर्ति नमस्ते।।५।। जम्बूद्वीप निर्माण सुकत्र्री पद कमलों में सदा नमस्ते।।६।। बचपन में वैराग्य…
भजन-२ द्वितीय अध्याय हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।। हैं जीव तत्व के पाँच भाव, जो आत्मा में ही होते हैं। औदयिक पारिणामिक उपशम, क्षय और क्षयोपशम होते हैं।। संसारी-मुक्त सभी जीवों में, यथाशक्ति पाये जाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि…
जिसके स्मरण से पाप कटे, ऐसी वात्सल्यमयी माता भारतभूमि पुण्य धरा पर, बड़ा उत्तरप्रदेश। बाराबंकी जिले का, टिकैतनगर ग्रामेश।।१।। छोटेलाल जी पिता तुम्हारे, माँ मोहिनी देवी। पवित्र कूख से जन्म धरा पर, कर दी खुशहाली।।२।। आश्विन शु. पूर्णिमा, चंद्रमा का धवल प्रकाश। ‘मैना’ ने जन्म लिया सन् उन्नीसौ चौबीस।।३।। लालन पालन माँ पिता के, दिये…
पूज्य श्री ज्ञानमती स्तुति अष्टक (गीता छंद) (१) जो जैन आगम धर्म सिंधू, को मथ अमृत पिया, ज्ञान निर्झर को बहाकर, भव्य जन का हित किया। वे ज्ञान लक्ष्मी सुख प्रदाता, तीन जग में पूज्य हैं, है कोटि वंदन मात पद में, वे भवोदधि तीर हैं।। (२) हो शुद्ध योगी, बुद्ध योगी, ज्ञान योगी साधिका,…
भजन-१ प्रथम अध्याय तर्ज—हे वीर तुम्हारे द्वारे पर……… हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।। संसार दुखों से घबराकर, इक मानव हितपथ ढूंढ़ रहा। निग्र्रन्थ दिगम्बर गुरु को लख-कर प्रश्न एक वह पूछ रहा।। आत्मा का हित कैसे होता, कैसे प्राणी निजसुख पाते।…