51. लोयस्सुज्जोययरे
कृतिकर्म विधि (अध्याय २) ‘‘लोयस्सुज्जोययरे………’’ अमृतर्विषणी टीका— लोगुज्जोए धम्मतित्थयरे जिणवरे य अरहंते। कित्तण केवलिमेव य उत्तमबोिंह मम दिसंतु।।५४१।।१ गाथार्थ—लोक में उद्योत करने वाले धर्म तीर्थ के कर्ता अर्हन्त केवली जिनेश्वर प्रशंसा के योग्य हैं। वे मुझे उत्तम बोधि प्रदान करें।।५४१।। आचारवृत्ति—लोक अर्थात् जगत् में उद्योत अर्थात् प्रकाश को करने वाले लोकोद्योतकर कहलाते हैं। उत्तमक्षमादि को…