16.सर्वसाधु पूजा
सर्वसाधु पूजा स्थापना गीताछंद जो नित्य मुक्तीमार्ग रत्नत्रय स्वयं साधें सही। वे साधु संसाराब्धि तर पाते स्वयं ही शिव मही।। वहं पे सदा स्वात्मैक परमानंद सुख को भोगते। उनकी करे हम अर्चना, वे भक्त मन मल धोवते।।१।। ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं सर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं सर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र तिष्ठ...