मुक्ति प्राप्त मुनि स्तोत्र सोरठा ऋषभदेव के शिष्य, साठ सहस नौ सौ कहे। लिया मुक्ति पद नित्य, नितप्रति वंदूं भाव सों।।१।। अजितनाथ के साधु, रत्नत्रय निधि के धनी। सतहत्तर सु हजार, इक सौ यतिगण शिव गये।।२।। संभव के इक लाख, सत्तर सहस सु एक सौ। मुक्ति गये मुनिनाथ, वंदत समकित निधि मिले।।३।। दोय लाख अस्सी,…
मृत्युंजय स्तोत्र (तीर्थंकर आयु स्तोत्र) शंभु छंद तीर्थंकर प्रभु अंतिम नरायु, पाकर आयू का अंत करें। फिर काल अनंतानंतों तक, परमानंदामृत पान करें।। जो प्रभु की आयु नमें वे क्रम से, नर सुर की पूर्णायु धरें। छ्यासठ हजार त्रयशत छत्तिस, भव क्षुद्र सभी निर्मूल हरें।।१।। श्री आदिनाथ सुकुमार काल, है बीस लाख वर्ष पूरव। है…
पंचकल्याणक स्तोत्र (गर्भकल्याणक स्तोत्र) दोहा तीर्थंकर प्रकृती यहाँ, महापुण्यफलराशि । मन वच तन से मैं नमूं, मिले सर्वसुख राशि।।१।। गीता छंद नगरी अयोध्या में पिता, श्री नाभिराजा के यहाँ। मरुदेवि माता गर्भ में, सर्वार्थसिद्धी से यहाँ।। पुरुदेवजिन आषाढ़ वदि, दुतिया सुउत्तराषाढ़ में। जिन गर्भ मंगल नित नमूं, इससे लहूँ सुखसात मैं।।१।। साकेत नगरी में पिता,…
मोक्ष कल्याणक वन्दना दोहा स्वात्म सुधारस सौख्यप्रद, परमाह्लाद करंत। नमूँ नमूँ नित भक्ति से, हो मुझ शांति अनंत।।१। गीता छंद जय जय जिनेश्वर तीर्थकर, प्रभु सिद्ध पद को पा लिया। जय जय जिनेश्वर सर्व हितकर, मोक्षमार्ग दिखा दिया।। संपूर्ण कर्म विनाश कर, कृतकृत्य त्रिभुवनपति बने। यममल्ल को भी चूर कर, प्रभु आप मृत्युंजयि बने।।२।। तत्क्षण…
श्री अनादिनिधनस्तोत्रम् हिन्दी अनुवादक परम पूज्य आचार्य श्री सुविधिसागरजी महाराज स्तोत्रकार अज्ञात अनादिनिधने नाथ ! संसारे दु:खसागरे। चश्ले विषम भीमे, अगाधे पारवर्जिते।।१।। अर्थात्— हे नाथ ! अनादिनिधन, चंचल, विषम, भीम, अगाध, पाररहित संसार के दु:खसागर में…१।। जन्ममृत्युजरातोये, तृष्णामकरसज्र्ले। अज्ञानसिकताकीर्णे, मायादोषतरङ्गके।।२।। अर्थात्— जन्म, जरा और मृत्यु का जल है, तृष्णारूपी मगरमच्छ है, अज्ञानरूपी बालुका से भरा…