भाषा पर्याप्ति काल!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भाषा पर्याप्ति काल – Bhasha Paryaptikala. Period of vocal completion. भाषा पर्याप्ति पूर्ण होने पर जितने समय तक मन पर्याप्ति पूर्ण न हो तब तक भाषा पर्याप्ति काल कहलाता है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भाषा पर्याप्ति काल – Bhasha Paryaptikala. Period of vocal completion. भाषा पर्याप्ति पूर्ण होने पर जितने समय तक मन पर्याप्ति पूर्ण न हो तब तक भाषा पर्याप्ति काल कहलाता है “
एकांग One organ activity (reverence with bending the head only). नमस्कार का प्रकार (केवल सिर झुकाना एकांग नमस्कार है)। [[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सत्कर्म – Satkarma. Good deeds, a composition composed by Acharya Virsen on Shatkhandagam treatise. अच्छे कर्म, आचार्य वीरसेन (ई. 770-827) द्वारा रचित प्राकृत षट्खण्डागम का अतिरिक्त अधिकार “
एकादश अंगधर Jain Acharyas possessing knowledge of 11 Angas. 11 अंगधारी 5 आचार्य- नक्षत्र, यशपाल, पाण्डु, ध्रुवसेन, कंस।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रूद्ररूद्र – पुश्पदंत भगवान के तीर्थकाल मे हुए रूद्र का नाम। Rudrarudra-Name of a rudra in the era of lord Pushpadant
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मुष्टिविधान व्रत–Mushtividhan Vrat. A particular kind of vow of worshiping the Lord Arihant. प्रतिवर्ष भादो, माघ व चैत्र मास में अर्थात तीनों सोलहकारण पर्वो में क्र. 1 से शु. 15 तक पुरे–पुरे महीने प्रतिदिन 1 मुष्टि प्रमाण शुभ द्रव्य भगवान् के चरणों में चढ़ाकर अभिषेक व चातुविशति जिन पूजन करना” साथ ही ॐ…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लवणांकुष – रामचन्द्र जी के पुत्र जो पावागढ से मोक्ष गये। Lavanamkusa-The son of lord Ramchandara, who got salvation from the ‘Pavagarh’ a jaina pilgrimage
[[श्रेणी : शब्दकोष]] बाली – Bali. Name of warrior ultimately who got salvation. किष्किन्धपुर के राजा सूर्यरज का पुत्र, जिसने राम व रावण युद्ध से विरत्क हो दीक्षा धारण की एवं अन्त में निवारण प्राप्त किया “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सदर चउक – Sadara Chauka. Quartet of particular 4 types of Karmic nature (Tiryanch Gati, Tiryanchgatyanupurvi, Tiryanch Ayu, Udyot). तिर्यंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, तिर्यंचायु और उद्योत इन 4 कर्म प्रकृतियों को सदर चउक कहते है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सगर – Sagara. Name of the 2nd Chakravarti (emperor), who was the main listener in the assembly of Lord Ajitnath. द्वितय चक्रवर्ती; तीर्थंकर अजितनाथ का मुख्य श्रोता “