चक्रलाभक्रिया!
चक्रलाभक्रिया An auspicious act of getting precious jewels due to spiritual merits ‘Punya’. गर्भान्वय की एक क्रिया ; पुण्य के प्रताप से नवनिधि व चक्ररत्न की प्राप्ति ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चक्रलाभक्रिया An auspicious act of getting precious jewels due to spiritual merits ‘Punya’. गर्भान्वय की एक क्रिया ; पुण्य के प्रताप से नवनिधि व चक्ररत्न की प्राप्ति ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी: शब्दकोष]] मत्सर – Matsara. Jealousy, Envy. ईर्ष्या, ज्ञानावरण व दर्शनावरण का कारण “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भूतज्ञायक शरीर – Bhutagyaka Sarir. Left body of most learned one (after death). कर्मस्वरूप की जाने वाला जिस शरीर को छोड़ आया है वह भुतज्ञायक शरीर है इसके च्युत, च्यावित, त्यक्त ३ भेद हैं “
गोम्मटेश्र्वर The statue of Lord Bahubali situated at Shravanbelgola. दक्षिणी भारत के श्रवणबेलगोला में चामुंडराय(गोम्मत) द्वारा स्थापित ५७ फुट उत्तुनंग भगवन बाहुबली की प्रतिमा का नाम ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी: शब्दकोष]] मणिकांचन योग – Manikaanchan Yoga. Mutual glorificatory association. जिस प्रकार मणि युक्त स्वर्ण अंगूठी में मणि से स्वर्ण की शोभा बढ़तीं है एवं स्वर्ण से मणि की शोभा बढ़तीं है उसी प्रकार परस्पर में एक-दूसरे की शोभा के वृधिगंत होने से मणिकांचन योग कहलाता हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भिमबाहू – Bhimabahu. The son of Dhratrashtra Gandhari. धृतराष्ट – गांधारी के दो पुत्रों में एक का नाम “
गृहीत मिथ्यात्व Wrong conception (acquired by the false speech). दूसरे के द्वारा मिथ्या उपदेश सुनकर जीवादि पदार्थों के विषय में जो मिथ्या श्रद्धान रूप भाव उत्पन्न होता है ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मुख्य गणधर– Mukhya Gandhar. Head of the chief of disciples of Lord. तीर्थंकर के प्रधान शिष्य, जो दिव्यध्वनी का सार दवादवाशांगश्रुत के रूप में जगत को प्रदान कटे है”
चंद Some, a few, one or two, Name of a summit and its deity. कुछ, थोडा , अपर विदेह मने स्थित देवमाल वक्षार का एक कूट व देव ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकृति बंध – Prakrti Bandha. Regular binding of different types of karmic natures. राग, द्वेषादि के निमित्त से जीव के साथ ज्ञानावरणादि कर्मों का निरंतर बंध होना अर्थात् जीव के भावों की विचित्रता के अनुसार विभन्न प्रकार की फलदान शक्ति वाले कर्मों का बंध होना “