संबोधि :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == संबोधि : == खचरामरमनुज—करांजलि—मालाभिश्च संस्तुता विपुला। चक्रधरराजलक्ष्मी:, लभ्यते बोधि: न भव्यनुता।। —समणसुत्त : २०४ (इसमें संदेह नहीं कि) शुभ भावों से विद्याधरों, देवों तथा मनुष्यों की करांजलिबद्ध स्तुतियों से स्तुत्य चक्रवर्ती सम्राट् की विपुल राज्यलक्ष्मी (तक) उपलब्ध हो सकती है, किन्तु भव्य जीवों द्वारा आदरणीय सम्यक्—सम्बोधि प्राप्त नहीं…