नीतिसार!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नीतिसार – Neetisaara. A book written by Aacharya Indranandi. आचार्य ईन्द्रनंदी (ई. श. 10) की नीति विषयक रचना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नीतिसार – Neetisaara. A book written by Aacharya Indranandi. आचार्य ईन्द्रनंदी (ई. श. 10) की नीति विषयक रचना “
उद्भाव Origination, Production, Appearance. उत्पत्ति सन्तति उत्पादन।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शिवगुप्त – Shivagupta. Name of the initiator (an acharya) of Chakravarti (emperor) Sanatkumar, Name of the disciple of Gupti-riddhi saint of Punnat group. चक्रवर्ती सनत्कुमार के दीक्षागुरु ” पुन्नाट संघी गुप्तिऋद्धि के शिष्य तथा अर्हदवलि के गुरु, समय- ई.स. 33 “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निस्तारण मंत्र – Nistaarana Mantra. A pain relieving Mantra (mystic words). कष्ट निवारण मंत्र, गर्भान्वय क्रियाओं में इन मंत्रों से होम होता है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भावाभिनन्दी – Bhavabhinadi. The welcomer of the worldly existence. सांसारिक अस्तित्व का अभिनन्दन करने वाला “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निसर्ग क्रिया – Nisarga Kriyaa. Encouraging for the sinful or wrong activities, Abetting. आस्रव को बढ़ाने वाली श्रावक की 25 क्रियाओं में सत्रहवीं क्रिया; जो प्रवृत्ति पाप का कारण है उसमें सम्मति देना “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == साहसी : == जाव य ण देन्ति हिययं पुरिसा कज्जाइं ताव विहणंति। अह दिण्णं तिय हिययं गुरुं पि कज्जं परिसमत्तं।। —कुवलयमाला जब तक साहसी पुरुष कार्यों की तरफ अपना ध्यान नहीं देते, तभी तक कार्य पूरे नहीं होते हैं। किन्तु उनके द्वारा कार्यों के प्रति हृदय लगाने से…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वचन (अनालोच्य) – Vachan (Anaalochya). False interpretation of something. असत्य वचन के 4 भेदों में एक भेद ; विपरीत सत् पदार्थ का प्रतिपादन करना ” जैसे – बैल है उसका विचार न कर यहाँ घोडा है ऐसा कहना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निष्क्रियत्व शक्ति – Nishkriyatva shakti. Supreme power of inactivity (of Siddhas). समस्त कर्मों के अभाव से प्रवृत्त आत्मप्रदेशों की निस्पन्द्ता स्वरूप निष्क्रियत्व शक्ति है, जो कि सिद्ध अवस्था में प्रगट होती है “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == गुणी : == लच्छीए विणा रयणायरस्स गम्भीरिमा तहज्जेव। सा लच्छी तस्स विणा कस्स न गेहे परिब्भई।। —गाहारयणकोष : ४५ लक्ष्मी के बिना भी रत्नाकर की गंभीरता तो वैसी ही बनी हुई है, किन्तु सागर को छोड़कर चली गई लक्ष्मी को कहाँ—कहाँ नहीं भटकना पड़ता ? ठाणेसु गुणा पथड़ा ठाणाणि,…