भाग्योदया यह संसार पुन्य पाप का खेल है। कभी पुण्य का उदय आता है तो मानव को अनायास संसार के वैभव प्राप्त हो जाते हैं और जब पाप का उदय आता है तब देखते—देखते सारी सम्पदा विलीन हो जाती है, जैसे पवन के झकोरों से बादलों का समूह। वास्तव में यह संसार संयोग—वियोग सुख—दुख और…
कषायप्राभृत और चूर्णि सूत्रों के कर्ता (श्री गुणधर आचार्य एवं आचार्य श्री यतिवृषभ) श्री वीरसेनस्वामी ने अपनी जयधवला टीका के प्रारंभ में मंगलाचरण करते हुए गुणधर भट्टारक, आर्यमंक्षु, नागहस्ति और यतिवृषभ नामक आचार्यों का निम्न शब्दों में स्मरण किया- ‘‘जेणिह कसायपाहुडमणेयणयमुज्जलं अणंतत्थं। गाहाहि विवरियं तं गुणहरभडारयं वंदे।।६।। गुणहरवयणविणिग्गयगाहाणत्थोवहारिओ सव्वो। जेणज्जमंखुणा सो स णागहत्थी वरं देऊ।।७।।…
पूज्य आर्यिका ज्ञानमतीकृत नियमसार-स्याद्वाद चंद्रिका टीका-एक दृष्टि सारांश जैन वाङ्मय के प्रकाशन के क्षेत्र में अपनी लौह लेखनी के द्वारा पूज्य १०५ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने कीर्तिमान स्थापित किया है। अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी एवं प्रतिमूर्ति रूप उनके अकथित श्रम से चतुरनुयोगी विपुल साहित्य का सृजन हुआ है। निम्न पंक्तियाँ उन पर सटीक रूप से चरितार्थ…
दंसणकहरयणकरंडु पाण्डुलिपि : एक परिचय —ब्र० धमेन्द्र जैन विकास प्राधिकरण (प्राकृत) राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, जयपुर-परिसर,त्रिवेणी नगर ,जयपुर- राज० सारांशप्राकृत भाषा का ही विकसित सरल रूप अपभ्रंश भाषा है। इसका साक्षात् सम्बन्ध हिन्दी भाषा से है तथा पश्चिमोत्तर भारत की अन्य भाषाओं का स्रोत भी यही अपभ्रंश भाषा मानी जाती है। ७वीं शताब्दी के बाद अपभ्रंश…
जैन दर्शन : मन का स्वरूप जहाँ भी ज्ञान मीमांसा की चर्चा होती है, वहाँ मन की भी चर्चा होती है, क्योंकि इन्द्रिय और मन के सहयोग से ही ज्ञेय को जानकर ज्ञान करते हैं। अत: सभी दर्शनों ने किसी न किसी रूप में मन के अस्तित्व को स्वीकार किया है तथा उसका स्वरूप निरूपित…
आचार्य उमास्वामी एवं उनका तत्त्वार्थसूत्र ‘‘तत्त्वार्थसूत्र’’ के रचयिता आचार्य उमास्वामी मूलसंघ के चमकते हुए रत्न थे। भगवद् कुन्दकुन्दाचार्य के पश्चात् वही एक ऐसे आचार्य हैं जो प्राचीन और सर्वमान्य हैं। भगवद् कुन्दकुन्द के समान उमास्वामी भी दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों को मान्य हैं। दिगम्बर जैन उनका भगवत् कुन्दकुन्द का वंशज मनाते हैं। भगवान…
आदिपुराण में वर्णित आर्यिकायें प्रस्तुति – गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी आर्यिका ब्राह्मी-सुन्दरी – भगवान् ऋषभदेव को केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद उनकी पुत्री ब्राह्मी१ जो कि भरत की छोटी बहन थी उन्होंने भगवान के समवशरण में सर्वप्रथम आर्यिका दीक्षा ग्रहण की थी। ब्राह्मी की छोटी बहन सुन्दरी ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली थी। ये…
चक्रवर्ती का वैराग्य अरुण कुमार – गुरूजी! यदि कोई अपनी जिम्मेदारी को न संभालकर दीक्षा ले लेता है तो उसे बहुत ही पाप लगेगा। गुरूजी – नहीं अरुण, ऐसी बात नहीं है। क्या जब यमराज आता है तब कोई अपनी जिम्मेदारी ही संभालते रहते हैं? अरुण कुमार – मृत्यु के सामने तो सभी की लाचारी…
पर्याप्ति प्ररूपणा सार पर्याप्ति—ग्रहण किये गये आहार वगर्णा को खल-रस भाग आदि रूप परिणमन कराने की जीव की शक्ति के पूर्ण हो जाने को ‘‘पर्याप्ति’’ कहते हैं। ये पर्याप्तियाँ जिनके पाई जाएं उनको पर्याप्त और जिनकी वह शक्ति पूर्ण न हो उन जीवों को अपर्याप्त कहते हैं। जिस प्रकार कि घट, पट आदि द्रव्य बन…