समवसरण वंदना
समवसरण वंदना गणिनी ज्ञानमती दोहा चन्मय चिंतामणि प्रभो! गुण अनंत की खान। समवसरण वैभव सकल, वह लवमात्र समान।।१।। शंभु छंद जय जय तीर्थंकर महावीर, तुम धर्मचक्र के कर्ता हो। जय जय अनंतदर्शन सुज्ञान, सुख वीर्य चतुष्टय भर्ता हो।। जय जय अनंत गुण के धारी, प्रभु तुम उपदेश सभा न्यारी। सुरपति की आज्ञा से धनपति, रचता...