श्री अनादिनिधन स्तोत्रम्
श्री अनादिनिधन स्तोत्रम् हिन्दी अनुवादक परम पूज्य आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज स्तोत्रकार अज्ञात अनादिनिधने नाथ ! संसारे दु:खसागरे। चश्ले विषम भीमे, अगाधे पारवर्जिते।।१।। अर्थात्— हे नाथ ! अनादिनिधन, चंचल, विषम, भीम, अगाध, पाररहित संसार के दु:खसागर में...१।। जन्ममृत्युजरातोये, तृष्णामकरसज्र्ले। अज्ञानसिकताकीर्णे, मायादोषतरङ्गके।।२।। अर्थात्— जन्म, जरा और मृत्यु का जल है, तृष्णारूपी मगरमच्छ है, अज्ञानरूपी बालुका...