श्री अभिनन्दननाथ भगवान की यक्षिणी वज्रश्रंखला की आरती तर्ज – जनम- जनम में पाऊं ……………………………….. आरति करने आये माता द्वार तिहारे , हाँ द्वार तिहारे , वज्रश्रंखला माँ की आरति , सारे कष्ट निवारे || टेक ० || यक्षेश्वर की आप प्रिया हो, जीवन सुखी बनाती हो | मनवांछित फल देकर उसके , घर खुशहाली…
भगवान सुमतिनाथ की शासनदेवी पुरुषदत्ता माता की आरती तर्ज – मिलो न तुम तो ………………………………. मात पुरुषदत्ता को ध्याएं , जगमग दीप जलाएं , हृदय में ज्योति जगायें || टेक ० || सुमतिनाथ के शासन की , यक्षिणी कहातीं माता प्यारी हैं || हो ………………… जिसने है ध्याया उसके , जीवन में फ़ैली उजियारी है…
जैन धर्म के वर्तमानकालीन पांचवें तीर्थंकर भगवन सुमतिनाथ हैं, जिनका जन्म अयोध्या में हुआ | इनके शासन देव का नाम तुम्बरू यक्ष है|
मुनिसुव्रतनाथ भगवान की स्तुति मुनिसुव्रत! सुव्रत के दाता, भव हर्ता मुक्ति विधाता हो। मैं नमूँ तुम्हें मेरे स्वामी, मुझको भी सिद्धि प्रदाता हो।। वह राजगृही नगरी धन है, त्रैलोक्य गुरू जहाँ थे जन्में। हैं धन्य सुमित्र पिता माता, सोमा भी धन्य हुईं जग में।।१।। श्रावण वदि दूज गर्भ बारस१, वैशाख वदी में जन्म लहा। वैशाख…
हरिणी छंद-(१७ अक्षरी) स्वगुणरुचिरै: रत्नै:, रत्नाकरो व्रतशीलभृत्। समरसभरै: नीरै:, पूर्ण: महानिधिमान् पुमान्।। त्रिभुवनगुरुर्विष्णु-र्ब्रह्मा शिवो जिनपुंगव:। विगलितमहामोहोऽदोषो जिनो मुनिसुव्रत:।।१।। कुसुमितलता वेल्लिता छंद-(१८ अक्षरी) कर्तुस्तीर्थस्य, प्रणतदिविज: ते सुमित्र: पितासौ। धन्या सोमा सा, त्रिभुवनगुरोर्जन्मदात्री प्रसिद्धा।। गर्भे संयातो, द्वितयदिवसे, श्रावणे कृष्णपक्षे। जातो वैशाखे, विगलिततमा: कृष्णपक्षे दशम्यां।।२।। सिंहविक्रीडित छन्द:-(१८ अक्षरी) व्रतगुणनिधिभृत्…
चतुर्विध संघ के अधिनायक आचार्य परमेष्ठी होते हैं, ये छत्तीस मूलगुणोंके धारक होते हैं, संघ के शिष्यों को शिक्षा, दीक्षा और प्रायश्चित्त आदि देते हैं | संघ के सभी शिष्य
मुनि -आर्यिका, क्षुल्लक- क्षुल्लिका आदि इन आचार्य की वंदना करते समय कौन सी भक्तियां पड़ी जाती हैं ये आपको यहां बताया गया है |
निर्वाण अर्थात् मोक्ष | किन महापुरुष ने किस स्थान से मोक्षपद को प्राप्त किया इसका वर्णन निर्वाण भक्ति में किया गया है, उसी निर्वाण भक्ति का पद्यानुवाद गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के द्वारा किया गया या है जिसे यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है|
श्री नेमिनाथ स्तुति: (सप्तविभक्ति समन्वित) नेमिनाथो जिनेन्द्रस्त्वं, दीक्षालक्ष्मी: समाश्रित:। नेमिनाथं नमामि त्वां, यमनियमप्राप्तये।।१।। नेमिनाथेन लोकेऽस्मिन्, जीवदया प्रदर्शिता। नेमिनाथाय भक्त्या मे, नमोऽस्तु कोटिकोटिश:।।२।। नेमिनाथाद् महातीर्थं, ऊर्जयन्तं भुवि श्रुतं। नेमिनाथस्य भक्ता हि, कृष्णहलभृदादय:।।३।। नेमिनाथे मनो बद्धं, वरदत्तगणीश्वर:। हे नेमिनाथ! मां पाहि, यथाख्यातं प्रयच्छ मे।।४।। श्री नेमिजिन स्तोत्र शार्दूलविक्रीडित छंद-(१९ अक्षरी) यावन्नो प्रभवेच्च…