रत्नत्रय स्तोत्र
रत्नत्रय स्तोत्र रोला छंद रत्नत्रय है धर्म, निश्चित मुक्ति प्रदाता। सम्यग्दर्शन ज्ञान, चारित से सुखदाता।। निश्चय औ व्यवहार, द्विविध धर्म रत्नत्रय। वंदूं शीश नमाय, निज को करूँ धर्ममय।।१।। (सम्यग्दर्शन स्तोत्र) सम्यग्दर्शन रत्न, आठ अंग युत माना। मोक्ष मार्ग का मूल, मुनियों ने है जाना।। नि:शंकित है अंग, जिन वच में निंह शंका। वंदूं शीश नमाय,...