प्रतरसमुदघात!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रतरसमुदघात – Pratarasamudghaata. A type of area extrication (Samudghat). समुदघात का एक भेद; केवली भगवान् के जीवप्रदेशों का वातवलय से रुके हुए क्षेत्र को छोड़कर सम्पूर्ण लोक में व्याप्त होने का नाम प्रतरसमुदघात है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रतरसमुदघात – Pratarasamudghaata. A type of area extrication (Samudghat). समुदघात का एक भेद; केवली भगवान् के जीवप्रदेशों का वातवलय से रुके हुए क्षेत्र को छोड़कर सम्पूर्ण लोक में व्याप्त होने का नाम प्रतरसमुदघात है “
उपक्रम An initial stage, Undertaking, A type of persuance in accordance with natural matters. किसी कार्य को प्रारम्भ करना प्रकृत- पदार्थ को श्रोताओं की बुद्धि में बैठा देना उपक्रम है इसका दूसरा नाम उपोद्धात भी है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुष्पदंत पुराण – Puspadamta Purana. A book written by Acharya Gunvarma. आचार्य गुणवर्म (ई. १२३०) कृत एक ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुष्करद्वीप सिध्द – Puskaradvipa Siddha. Beings getting salvation from Pushkarardhadvip (island). पुष्करार्ध द्वीप से सिध्द होने वाले जीव (संख्यात) “
उपधान Religious observances. आचाम्ल आहार निर्विकृति आहार आदि शास्त्र में जो क्रिया कही हो उसका नियम करना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुरुरवा – Pururava. Name of a tribal persone who was the soul of Lord Mahavira in the past 34th birth. एक भील जो की महावीर भगवान का दूरवर्ती- ३४वा पूर्वभव है, जब उसने एक दिगम्बर मुनिराज से मघ, मांस, मधु त्याग का नियम ग्रहण किया था “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुराकल्प – Purakalpa. Old time pertaining to traditional theory. एतिह्या सहचरित विधि को पुराकल्प कहते है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रज्ञापरिषहजय – Pragyaaparishahajaya. Proudlessness of knowledge or intellect (sagacity with proudlessness). अनेक शास्त्रों में निपुण होते हुए भी जो साधू अपने ज्ञान का अभिमान नहीं करता, समता रखता है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भुजंगिनी – Bhujangini. One of the super power possessed by Ravan. रावण को प्राप्त अनेक विधाओं में एक विधा “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == जयश्री : == सव्वायरेण रक्खह तं पुरिसं जत्थ जयसिरी वसइ। अत्थमियम्मि मियंके तारेहिं न कीरए जोण्हा।। —गाहारयण कोष : ७८० जिस पुरुष में जयश्री निवास करती है, उसका सब प्रकार आदर के साथ रक्षण करो क्योंकि चन्द्र के अस्त होने पर तारों से प्रकाश नहीं होता। सुच्चिय सूरो…