भय संज्ञा!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भय संज्ञा – Bhaya Samjna. Fear instinct. ४ संज्ञाओं में एक संज्ञा; जिससे बचने की व छिपने की इच्छा होती हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भय संज्ञा – Bhaya Samjna. Fear instinct. ४ संज्ञाओं में एक संज्ञा; जिससे बचने की व छिपने की इच्छा होती हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नाना-जीव एक-अजीव – Nana-Jiva Eka-Ajiva Pertaining to different types of living beings and one non-living beings अनेक जीव और एक अजीव ”
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सत्यवादी : == विश्वसनीयो मातेव, भवति पूज्यो गुरुरिव लोकस्य। स्वजन इव सत्यवादी, पुरुष: सर्वस्य भवति प्रिय:।। —समणसुत्त : ९५ सत्यवादी पुरुष माता की तरह विश्वसनीय, जनता के लिए गुरु की तरह पूज्य और स्वजन की भाँति सबको प्रिय होता है।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मनोरम- Manorama. A type of peripatetic deities , Another name of Sumeru mountain. किन्नर नामक व्यंतर जाति का एक भेद , सुमेरु पर्वत का अपर नाम “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नो संसार – No Sansaara. State of supreme soul (omniscient) before getting salvation. चतुर्गति में परिभ्रमण न होने से तथा अभी मोक्ष की प्राप्ति न होने से सयोगकेवली की जीवन्मुक्त अवस्था ईषत्संसार यो नोसंसार है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नागहस्ती – Nagahasti Name of great saint. आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबली के समकक्ष के एक मुनि ” व्यग्रहस्ती के शिष्य और जीत्दंड के गुरु (समय ई. 93-162) ”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मय – Mya. Father’s name of Mandodari, A king of Yadav dynasty. मंदोदरीकेपिताकानाम , यदु (यादव) वंशकाएकराजा “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विरवित –Viravit Name of the disciple of Sinhbal and spiritual teacher of Padmasen पुन्नाटसंघ की गुर्वावली के अनुसार सिंहबल के शिष्य तथा पश्नसेन के गुरु ” समय – ई. श. ७ अंतपाद “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विरति – Virati. To be free from worldly attachments or sins i.e. desirelessness. विरक्त होना, हिंसादी पापों से छुटना, उदासीनता “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == संघ : == संघो गुणसंघात:, संघश्च विमोचकश्चकर्मणाम्। दर्शनज्ञानचरित्राणि, संघातयन् भवेत् संघ:।। —समणसुत्त : २५ गुणों का समूह संघ है। संघ कर्मों का विमोचन करने वाला है। जो दर्शन, ज्ञान और चारित्र का संघात (रत्नत्रय की समन्विति) करता है, वह संघ है। कर्मरजजलौघविनिर्गतरस्य, श्रुतरत्नदीर्घनालस्य। पंचमहाव्रतस्थिरर्किणकस्स, गुणकेसरवत:।। श्रावकजन—मधुकर—परिवृतस्य, जिनसूर्यतेजोबुद्धस्य। संघपद्मस्य…