संबंध!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संबंध – Sanbandha. Alliance, Relation, Connection. संयोग, मिलाप, साहचर्य ” जहां पर अभेद प्रधान और भेद गौण होता है वहां पर संबंध समझना चाहिए “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संबंध – Sanbandha. Alliance, Relation, Connection. संयोग, मिलाप, साहचर्य ” जहां पर अभेद प्रधान और भेद गौण होता है वहां पर संबंध समझना चाहिए “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्रिति – Shriti. Dependence, support, approach, Multiplicative increase in virtues. अवलम्ब, सहारा, पहुंच ” सम्यग्दर्शन आदि शुद्ध गुणों की गुणित रूप उत्तरोत्तर उन्नत अवस्था को प्राप्त कर लेना यह भाव श्रिति है, एवं सोपान पंक्तिक्रम से चढना यह द्रव्य श्रिति है ” भक्त प्रत्याख्यान सल्लेखना विधि के 40 अधिकारों में 9वां अधिकार, शुभ परिणामो…
उद्वेग Anxiety, Restlessness. इष्ट के वियोग में विह्वल भाव या घबराहट का भाव होना अर्थात् चिन्ता खेद विसमय आदि का होना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संप्रति – Sanprati. Present time, Another name of king Chandragupt-II. वर्तमान, मगधराज अशोक का पौत्र, अपरनाम चन्द्रगुप्त द्वितीय ” समय – ई.पू. 220-211 “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शोक (कर्मप्रकृति) – Shoka(Karmaprakriti). Karmic nature causing griefor sorrow. नोकषाय के 9 भेड़ों में एक भेद; जिसके उदय से शोक भाव होता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रव्रज्या- सप्त परम स्थान में से एक; सम्पूर्ण परिग्रह त्याग कर Þजिनदीक्षाß ग्रहण करना। Pravrajya- Renunciation of worldly affair for Jaina initiation
ईर्यापथ आस्रव A type of Karmic flow. जो कर्म वर्गणा मात्र योगों से आये कषाय का उदय न हो यह 11 वें, 12 वें व 13वें गुणस्थान में होता है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चंवर An auspicious article which is to be kept near Tirthankars’ (Jaina-Lords’) idol. प्रतिमा के पास में विद्यमान रहने वाले अष्ट मंगल द्रव्यों में एक ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रत्याख्यानावरण कर्मप्रकृति- pratyakhyanavarana karma prakrti Karmic nature obscuring positive relation चारित्र मोहनीय कर्म का एक भेद। संयम को रोकने वाली कशाय, जिसके उदय से संयम नामवाली परिपूर्ण विरति को यह जीव करने में समर्भ नही होता है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रत्यक्षज्ञान- pratyaksajnana Direction knowledge gained by the soul itself without any external help. इनिद्रय और मन की सहायता के बिना जो ज्ञान पदार्थ को स्पश्ट जाने, इसके दो भेदहैं- देष प्रत्यक्ष (अवधि एवं मन:पर्ययज्ञान) एवं सकल प्रत्यक्ष (केवलज्ञान)