प्रविष्ट!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रविष्ट – वंदना का एक अतिचार। अर्हतादि परमेशिठयों के अत्यंत निकट होकर वंदना करना। Pravista- An infraction of paying reverence, to be very near to the idol of lord Arihant , Acharyas etc
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रविष्ट – वंदना का एक अतिचार। अर्हतादि परमेशिठयों के अत्यंत निकट होकर वंदना करना। Pravista- An infraction of paying reverence, to be very near to the idol of lord Arihant , Acharyas etc
[[श्रेणी:शब्दकोष]] योगीन्द्रसागर – आचार्य समन्तिसागर महाराज अंकलीकर के एक प्रसिद्ध षिश्य बालाचार्य। समय ई ष 20 – 21 Yogindrasagara-Name of a saint, The disciple of Acharya shri Sanmatisagar maharaj
गिरि A mountain, Name of the kings of Yadu & Hari dynasties. पर्वत, यदु (यादव) वंश एवं हरिवंश के राजाओं का नाम ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रत्यय- pratyaya Knowledge, cause, inter relation casual ज्ञान, श्रद्धा, निमित, कारण, हेतु। जैनागम में प्रत्यय अर्थात आस्त्रव कर्मों के आने के द्वार के लिए मुख्यत: प्रयुä होता है।
दशलक्षण व्रत विधि एवं पूजा दशलाक्षणिकव्रते भाद्रपदमासे शुक्ले श्रीपंचमीदिने प्रोषध: कार्य:, सर्वगृहारम्भं परित्यज्य जिनालये गत्वा पूजार्चनादिकञ्च कार्यम्। चतुर्विंशतिकां प्रतिमां समारोप्य जिनास्पदे दशलाक्षणिकं यन्त्रं तदग्रे ध्रियते, ततश्च स्नपनं कुर्यात्, भव्य: मोक्षाभिलाषी अष्टधापूजनद्रव्यै: जिनं पूजयेत्। पंचमीदिनमारभ्य चतुर्दशीपर्यन्तं व्रतं कार्यम्, ब्रह्मचर्यविधिना स्थातव्यम्। इदं व्रतं दशवर्षपर्यन्तं करणीयम्, ततश्चोद्यापनं कुर्यात्। अथवा दशोपवासा: कार्या:। अथवा पंचमीचतुर्दश्योरुपवासद्वयं शेषमेकाशनमिति केषाञ्चिन्मतम्, तत्तु शक्तिहीनतयाङ्गीकृतं न…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रतीघात- pratighata Obstruction hinderance प्रतिबन्ध या बाधा।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] यशोनंदी – नन्दीसंघ बलात्कर गण में यष कीर्ति ई 231 – 299 के षिश्य व देवनंदी के गुरू ई 289 – 336। Yasonamdi-Name of an Acharya of nandi Group
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भूमिपाल – Bhumipala. Father’s name of the 17th Teerthankar (Jaina- Lord) situated in videh kshetra (region). विदेह क्षेत्र में स्थित १७ वें तीर्थकर वीरसेन’ के पिता का नाम “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वस्थान गुणकार – Svasthaana Gunakaara. Multiple results of karmas related to the span of Krishties. प्रत्येक संग्रहकृष्टि के अन्तर्गत प्रथम अंतरकृष्टि से अंतिम अंतरकृष्टि पर्यन्त अनुभाग अनंत-अनंतगुणा है परन्तु सर्व इस अनन्त गुणकार का प्रमाण समान है, इसे स्वस्थान गुणकार कहते है।