भद्रकलश!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भद्रकलश – Bhadrakalasa. Name of the treasurer of Ram’. ८ वें बलदेव श्रीराम के कोषाध्यक्ष “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भद्रकलश – Bhadrakalasa. Name of the treasurer of Ram’. ८ वें बलदेव श्रीराम के कोषाध्यक्ष “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मूलोत्तरप्रकृति–Mulottar Prakrati. Basic sub–karmic nature which are 148 in number. कर्मो की ज्ञानवरणादि 8मूलप्रकृति एवं इनके उत्तरभेद 148 मूलोत्तर प्रकृति कहलाती है”
जयंतिकी Name of a female divinity resident of Ruchak mountain. रूचक पर्वत निवासिनी एक दिक्कुमारी महत्तरिका।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्यादेकप्रदेशत्व – Syaadekapradessatva. Uni-dimenstional nature of matter (in some aspect).द्रव्य का एक सामान्य-भेद कल्पना निरपेक्ष निश्चय नय की अपेक्षा एकत्व होने से कथंचित् एक प्रदेशत्व स्वभाव है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पद्मनंदि पंचविंषतिका : A book written by Acharya Padmanandi. आचार्य पदमनन्दि (ई0 11 का उत्तरार्ध) द्वारा संस्कृत छंदों में रचित गृहस्थ धर्म प्ररूपक एक ग्रन्थ । इस ग्रंथ के स्वाध्याय से गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी को गृहस्थवस्था में अल्पआयु।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विद्युत्प्रभ – Vidyutprabha. One of the 4 Gajadant mountains, A city of vijayardh mountain. ४ गजदंत पर्वतों में एक गजदंत पर्वत, विजयार्ध पर्वत का एक नगर “
जड़ Non-sentient, fool, senseless material, Basic cause. जीव या संवेदना रहित पदार्थ ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सहभावी विशेष – SahabhaaveeVishesha. Co-existing factor-the property of a matter in it. गुण; जो वस्तु के सर्व प्रदेशों में व उसकी सर्व अवस्थाओं में साथ-साथ रहता है।
[[श्रेणी: शब्दकोष]] पदार्थ श्रद्धान: Real & right belief in all 9 mattars सम्यग्दर्शन हिंसादि रहित धर्म, अठारह दोष रहित आप्त, निग्र्रन्थ प्रवचन व गुरू में श्रद्धान रखना । 9 पदार्थो के यथार्थ श्रद्धान से सम्यग्दर्षन होता है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == गुणस्थान : == यैस्तु लक्ष्यन्ते, उदयादिषु सम्भवैर्भावै:। जीवास्ते गुणसंज्ञा निर्दिष्टा: सर्वर्दिशभि:।। मिथ्यात्वं सास्वादन: मिश्र:, अविरतसम्यक्त्व च देशविरतश्च। विरत: प्रमत्त: इतर: अपूर्व: अनिवृत्ति: सूक्ष्मश्च।। उपशान्त: क्षीणमोह: संयोगिकेवलिजिन: अयोगी च। चतुर्दश गुणस्थानानि च, क्रमेण सिद्ध: च ज्ञातव्या।। —समणसुत्त : ५४६-५४८ मोहनीय आदि कर्मों के उदय आदि (उपशम, क्षय, क्षयोपशम आदि)…