समयसार नाटक टीका!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] समयसार नाटक टीका – Samayasaara Naataka Teekaa. Name of a commentary book written by Pandit Sadasukh. पं. सदासुख (ई. 1795-1867) कृत समयसार नाटक पर लिखी गई टीका।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] समयसार नाटक टीका – Samayasaara Naataka Teekaa. Name of a commentary book written by Pandit Sadasukh. पं. सदासुख (ई. 1795-1867) कृत समयसार नाटक पर लिखी गई टीका।
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मुद्राकर्म–MudraKarm. An illustration to explain some religious thought, pre–marking of something. अनुयोग के निरुक्ति अर्थ के 5 द्रष्टांतो में एक द्रष्टांत; लकड़ी से कोई वस्तु तैयारकरने के पहले लकड़ी के ऊपर जो रंग भरी डोरी से चिंह कर दिया जाता है”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विरक्त – Virakta. One with aversion from the worldly life (attach-ments), indifferent, A recluse. उदासीन, सांसारिक राग या लालसा से मुक्त, जो इन्द्रिय विषयों से विरक्त होता है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विसर्जन –Visarjana. Completion, Sending deities back with respect. समापन, पूजा के ५ अंगों में एक अंग, जो पूजा की समाप्ति पर किया जाता है ” इसमें आगन्तुक देवों को आदरपूर्वक अपने-अपने स्थानों पर जाने के लिए प्रार्थना की जाती हैं “
घनान्गुल Cubic finger. अंगुल के घन को घनान्गुल कहते हैं, जिसमें लम्बाई , चौड़ाई एवं मोटाई विवक्षित रहती हो।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] समयसार (टीका) – Samayasaara (Teekaa). The commentary books on samayasar treatise written by 1. Acharya Amritchandra 2. Acharya Jaisen etc. आचार्य अमृतचन्द्र (ई. 905-955) द्वारा कृत आत्मख्याति संस्कृत टीका, आचार्य जयसेन (ई. श. 12-13) द्वारा कृत तात्पर्यवृत्ति संस्कृत टीका, पं. जयचंद छाबड़ा (ई. 1807) कृत आत्मख्याति वचनिका हिन्दी टीका, आचार्य श्री ज्ञानसागर (आचार्य श्री…
चामुंडराय पुराण A book written by ‘Chamundaray’. ई. ९७८ में लिखित चामुंडराय की एक कृति ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी: शब्दकोष]] मध्यम व्यास – Madhyama vyaasa. Middile diameter, a mathematical term. एक गणितीय पद “
घंटा Bell, A metallic disc struck as a bell. ऊंची और गंभीर ध्वनि वाला एक वाद्य ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] समदत्ति – Samadatti. Donation of something to those having same status with equanimity. समानदत्तिः क्रिया, मंत्र और व्रत आदि से जो अपने समान है उन्हें पृथ्विी, सुवर्ण, कन्या आदि देना अथवा मघ्यम पात्र को समान बुद्वि से श्रद्वा के साथ जो दान दिया जाता है। वह समानदत्ति कहलाता है।