आह्वान!
आह्वान Invocation. आमंत्रण बुलाना पूजन के पहले स्थापन में पूज्य की विनय के लिए आह्वान एक विधि है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
आह्वान Invocation. आमंत्रण बुलाना पूजन के पहले स्थापन में पूज्य की विनय के लिए आह्वान एक विधि है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
द्रव्य Matter, Substance, Reality. गुण और पर्याय का समूह या जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त है उसे द्रव्य कहते हैं। द्रव्य 6 होते हैं – जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
इन्द्रविधिदान क्रिया An auspicious and sacred act (to handover the duties by Indra). 45 वीं गर्भान्वय क्रिया- इस क्रिया में इन्द्र पद को प्राप्त जीव नम्रीभूत देवों को अपने अपने पदों पर नियुक्त करता है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
दोष निर्घातन विनय Reverence causing eradication of passions. दोष को नाश करने वाली विनय।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्रीपाल चरित – Shreepaala Charita. Name of many books written by different writers. सकलकीर्तिकृत संस्कृत छंदोंबद्ध (ई. 1406-1442), भट्टारक श्रुतसागर कृत संस्कृत गद्य रचना (ई. 1487-1499), कवि परिमल्ल (ई. 1594) कृत, ब्र. नेमिदत्त (ई. 1428), वादिचन्द्र (वि. 1637-1664) कृत हिन्दी गीत काव्य, पं. दौलतराम (ई. 1720-1772) कृत भाषा ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रशान्तता क्रिया- दीक्षान्वय की एक क्रिया; नाा प्रकार के उपवास आदि की भावनाओं को प्राप्त होना। Prasantata Kriya- An act of consecration, to having feelings fasting etc
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्रह्मसेन – Brahmasena. Name of the preceptor of Acharya Veersen. आचर्य वीरसेन के गुरु तथा जयसेन जी के शिष्य (ई. १०१३ ) का नाम “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्री – Shree. Prosperity, glory, brilliance, A mark of respect, Name of a city in the south of Vijayardh mountain, A female deity of Padma hrid, a large pond of Himvan mountain, A mountain of Bharat Kshetra Arya Khand (region). ऐश्वर्य, कीर्ति, यश, सरस्वती, प्रभा, आदर-सूचक शब्द जो नाम के आगे लिखा जाता है,…
छद्मस्थ Beings with hypocrisy or disguised form (upto 12th stage of spiritual development). छद्म अर्थात् ज्ञानावरण व दर्शनावरण में रहने वाले जीव , शुद्धात्म ज्ञान की अपेक्षा अल्पज्ञ जीव , १२वें गुणस्थान तक जीव छद्मस्थ होते हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == श्रावक-धर्म: == सहसाभ्याख्यानं, रहसा च स्वदारमन्त्र भेदं च। मृषोपदेशं कूटलेखकरणं च वर्जयेत्।। —समणसुत्त : ३१२ (साथ ही साथ) सत्य—अणुव्रती बिना सोचे—समझे न तो कोई बात करता है, न किसी का रहस्योद्घाटन करता है, न अपनी पत्नी की कोई बात मित्रों आदि में प्रकट करता है, न मिथ्या (अहितकारी)…