मेघचारण ऋद्धि!
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मेघचारण ऋद्धि–Meghacharan Riddhi. A type of super natural power (moving on clouds). चारण ऋद्धि का एक भेद; जिसके प्रभावसे मुनि अप्कायिक जीवो को पीड़ा न पहुचाकर मेघो पर से गमन करते है”
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मेघचारण ऋद्धि–Meghacharan Riddhi. A type of super natural power (moving on clouds). चारण ऋद्धि का एक भेद; जिसके प्रभावसे मुनि अप्कायिक जीवो को पीड़ा न पहुचाकर मेघो पर से गमन करते है”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पुण्यकर्म – Punyakarma. Auspicious consequences of Karmas. वह कर्म जिससे इष्ट पदार्थों की प्राप्ति होती है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्रह्मचर्य तप ऋध्दि – Brahmacarya Tapa Rddhi. A type of supernatural power (pertaining to celi- bacy). एक ऋध्दि; इस ऋध्दिधारी मुनिध्वरों के प्रभाव से ईति, भीती, युद्ध , दुर्भिक्षादि शांत हो जाते हैं”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म – Panchendriya Jaati Naama karma. A karmic nature causing five sensed beings. जिस नाम कर्म के उदय जीव पंचेन्द्रिय होता है “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मेघमालिनी–Meghamalini. A ruling female divinity of Himkut (a summit) of Nandan forest. नन्दनवन के हिमकूट की स्वामिनी दिक्कुमारी देवी”
देवराज The king of deities, Father’s name of 18th Teerthankar (Jaina-Lord) Mahabhadra situated in Videh Kshetra (region). देवताओं के राजा इन्द्र, विदेह क्षेत्र में स्थित 18 वें तीर्थंकर महाभद्र के पिता का नाम।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वाणिज्य कर्मार्य – Vaanijya Karmaarya.: Those having livelihood by trade of grains, gold etc. सावद्य कर्मार्य के 6 भेदों में एक 1 भेद ;जो अन्न ,वस्त्र ,सोना ,चांदी आदि के द्वारा आजीविका करते हैं “
एकत्वप्रत्यभिज्ञान Unitary recognition. स्मृति और प्रत्यक्ष के विशयभूत पदार्थ में एकता दिखाते हुए जोड़रूप ज्ञान ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वाचा उपकरण विवेक – Vaachaa Upakarana Vivek. Discrimination related to right speech. विवेक का एक भेद ,मैने इन ज्ञानोपकरणादि का त्याग किया ऐसा वचन बोलना “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यतिवृषभ–Yativrashabh. Name of a great Digambar Acharya who wrote many books like ‘Tiloy Pannati’ etc. कषाय प्राभ्रत के चूर्णसूत्र, तिलोय पण्णत्ति आदि के रचयिता एक आचार्य, ये आर्यमंक्षु व नागहस्ति के शिष्य (ई. 143–173) थे”