छेदपिंड!
छेदपिंड A book written by Indranandi ji. इन्द्रनंदि (श. १०-११) द्वारा कृत एक यत्याचार विषयक ग्रन्थ ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
छेदपिंड A book written by Indranandi ji. इन्द्रनंदि (श. १०-११) द्वारा कृत एक यत्याचार विषयक ग्रन्थ ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वर्तुक वन – Sarvartuka Vana. Name of the initiation & omniscience forest of Lord Chandraprabhu. चन्द्रप्रभु भगवान का दीक्षा वन एवं केवलज्ञान वन ।
धनधान्य प्रमाणातिक्रम Exceeding the set limits of grains, cattle and wealth (an infraction). परिगग्रह परिमाणव्रत का एक अतिचार, धन, गाय, भैस एवं धान्य पदार्थ संग्रह के लिए की हुई मर्यादा का उल्लंघन करना।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
छत्रपुर Name of a place of the past birth of Lord Mahavira. भगवान महावीर के पूर्व भव की नगरी का नाम ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वथा – Sarvathaa. In every way, in every respect, entirely. पूर्णतः, हर तरह से ।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भक्ति – Bhakti. Eulogical devotion for Lord. अर्हत आदि के गुणों में अनुराग रखना भक्ति है अथवा निज परमात्म तत्त्व के सम्यक् श्रध्दान – अवबोध – आचरण स्वरूप शुद्ध रत्नत्रय परिणामों में अनुरक्त रहना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वृद्धि – Vrddhi. Growth, Increase, Development विकास, बढ़ोत्तरी, पूर्व स्वभाव को कायम रखते हुए भावान्तररूप से अधिकता हो जाना व्रद्धि है”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्पगत – Sarvagata.. Omnipresent, all-pervading. सर्वव्याप्त-सभी जगह फैला हुआ। केवलज्ञान के सर्व लोकालोक को जानने के कारण जीव सर्वगत या सर्वव्यापी कहलाता है।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भवभिघ – Bhavabhidya. One destroyer of worldy transmigration, An epi- thet for the devotional prayer of Lord Arihant. संसार का भेदन करने वाली जिनभक्ति का विशेषण “
चतुष्टयी वृत्ति Four uses of money (acquisition, saving or protection, growth, expenses). अर्थ की ४ वृत्तियाँ -अर्जन ,रक्षण ,वर्धन ,व्यय ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]