इंद्रगिरी!
इंद्रगिरी A king of Hari dynasty. हरिवंश के एक राजा का नाम।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वेतस –Vetasa. Cane, a type of wood used in the Pichchhi of Jaina saints & other furniture too. बेंत, एक प्रकार की लकड़ी, जो जैनसाधुओं की पिच्छी में पकडने वाली डंडी के रूप में प्रयुक्त की जाती है ” वर्तमान में विशेष फ़र्निचर निर्माण में भी इसका प्रयोग होता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नोकर्म द्रव्य कर्म – Nokarma Dravya Karma. External substances causing some results by Karmic fruition. कर्म प्रकृति के उदय फलस्वरूप जो कार्य हो उस कार्य के लिए जो बाहरी वस्तु कारण भूत हो वह वस्तु प्रकृति का नोकर्म द्रव्य कर्म है “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == जीव : == प्राणैश्चतुर्भिर्जीवति, जीविष्यति य खलु: जीवित: पूर्वम्। स जीव:, प्राणा:, पुनर्बलमिन्द्रियमायुरुच्छ्वास:।। —समणसुत्त : ६४५ जो चार प्राणों से वर्तमान में जीता है, भविष्य में जीयेगा और अतीत में जिया है, वह जीव द्रव्य है। प्राण चार हैं—बल, इन्द्रिय, आयु और उच्छ्वास। अणुगुरुदेहप्रमाण: उपसंहारप्रसप्र्पत: चेतयिता। असमवहत: व्यवहारात्,…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वड्ढमाणचरिउ –Vaddhamaanachariu Name of a treatise written by poet Shridhar. कवि श्रीधर (ई .श. 12 का उत्तरार्ध) कृत 10 संधियों वाला अपभ्रंश काव्य ग्रन्थ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नैसर्गिक मिथ्यात्व – Naisargika Mithyaatva. Natural false belief. अग्रहीत मिथ्यात्व-परोपदेश के बिना मिथ्यात्व कर्म के उदय से जीवादि पदार्थों का अश्रद्धान रूप भाव “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्राह्मण – Brahmana. A Hindu- caste, known by virtues and good activities. जैन धर्म के अनुसार भरत चक्रवर्ती द्वारा स्थापित वर्ण ” ये ब्रह्मसूत्र (यज्ञोपवीत) को धारण करते थे तथा अहिंसा आदि सदाचार को पालते थे “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शीलचंद – Sheelachanda. Name of a Bhattarak of nandi group. नंदीसंघ बलात्कारगण उज्जयनी गद्दी के एक भट्टारक् ” समय – वि. 735 “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नैपीरियन – NaiNaipeeriyana. Name of ‘ Logarithm to the base 2’. अर्द्धच्छेद या लाघुरिक्थ गणित; 2 के आधार वाले लघुरिक्थ का नाम नैपीरिय लॉग है “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सद्गति : == समणं भट्ठचरित्तं ण हु सक्को सुग्गइं णेदुं। —मूलाचार, समयसराधिकार : १४ चारित्र से भ्रष्ट होने वाला श्रमण सद्गति प्राप्त करने में समर्थ नहीं।