वर्णविभाग!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वर्णविभाग – Varnavibhaaga.: Four classes into which Indo-Aryan society was early divided. वर्णव्यवस्था या वर्णभेद;क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, ब्राह्मण “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वर्णविभाग – Varnavibhaaga.: Four classes into which Indo-Aryan society was early divided. वर्णव्यवस्था या वर्णभेद;क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, ब्राह्मण “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विष – Visha. Poison, intense fruition of inauspicious Karmas is also called as poison. जहर, अशुभ कर्म के तीव्र उदय रूप फल को भी विष की संज्ञा प्रदान की गई है “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मिथ्या शल्य–Mithya Shalya. False concept of religious devotion. ‘अपना निरंजन दोष रहित परमात्मा ही उपादेय है’ ऐसी रूचिरूप सम्यक्त्व से विलक्षण मिथ्याशल्य कहलाती है ” अर्थात् मिथ्यात्व में रूचि रखते हुए व्रतों का पालन करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंच अग्नि – Pancha Agni. Five kinds of fire, Five fold conducts observed by jain Acharyas. पांच प्रकार की अग्नि ” जैसे जैन धर्मके अनुसार पंचाचार को पंचाग्नितप भी कहते है ” जिनका पालन प्रमुखता से आचार्यगण करते है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] याचना परिशह जय – जैन साधुओ द्वारा क्षुदा तृश्णा से पीडित होने पर भी अपने लिए दीनता पूर्वक नहीं मांगना अर्थात मौनपूर्वक बाधाओ को सहन करना याचना – परिशह जय कहलाता है। Yacana Parisaha Jaya-Victory over affiictions caused due to hungers & thirst etc. by a saint (i.e. to refrain from begging even in…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सूत्ररूचि – Sutra Ruchi. Right perception generated through the scripture listening. सूत्रसम्यग्दर्शन, मुनि के चारित्रानुष्ठान को सूचित करने वाले आचार सूत्र को सुनकर जो तत्वार्थश्रद्धान होता है, उसे सूत्र रूचि सम्यग्दर्शन कहा जाता है।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकाश्य – Prakashya. Liable to be revealed. प्रगट करने योग्य “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] योजन – क्षेत्र का प्रमाण विषेश। 4 कोस का एक लघु योजन, दो हजार कोस का एका महायोजन होता है। Yojana-A large measurement unit of area
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीरमातंडी –Viramatamdi Name of a Kannad commentary book written by Chamundarai. चामुंडराय (ई. श. १० – ११) द्वारा रचित गोमट्टसार की कन्नड़ वृत्ति “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पिशाच देव – Pisaca Deva. A type of peripatetic deities. व्यंतर देवों के दस भेदों में से एक भेद “