भागफल्गु!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भागफल्गु – Bhagaphalgu. Name of the 54th chief disciple of Lord Rishabhdev. तीर्थकर वृषभदेव के ५४ वें गणधर “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भागफल्गु – Bhagaphalgu. Name of the 54th chief disciple of Lord Rishabhdev. तीर्थकर वृषभदेव के ५४ वें गणधर “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रचाला – Prachalaa. Drowsiness (Karmic nature causing drowsiness). दर्शनावरण कर्म का एक भेद; जिसके उदय से प्राणी नींद में भी कुछ जागता है और कुछ सोता है “
द्रव्य युति State of the unity of matters.समीपता या संयोग का नाम युति है जीवयुति, पुद्गलयुति और जीवपुद्गलयुति के भेद से द्रव्य युति तीन प्रकार की है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मुक्तादाम–Muktadaam. A type of wreath of pearls. मोतियो से निर्मित मालाये, इन्हें विमानों में लटकाकर उनकी शोबव्रद्धि की जाति है”
द्रव्य पर्याय आरोप Treatment of model appearance (Paryaya) into matter and matter into model appearance. अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय से द्रव्य में पर्याय का और पर्याय में दव्य का उपचार करना।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] [[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == मनुष्य : == मण्णंति जदा णिच्चं मणेण णिउणा जदो दु ये जीवा। मण उक्कडा य जम्हा तम्हा ते माणुसा भणिया।। —पंचसंग्रह : १-६२ वे मनुष्य कहलाते हैं जो मन के द्वारा नित्य ही हेय—उपादेय, तत्त्व—अतत्त्व तथा धर्म—अधर्म का विचार करते हैं, कार्य…
द्रव्यत्व Substantiality. द्रव्य के 6 सामान्य गुणों में एक जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य हमेशा एकसा नहीं रहता, उसकी पर्यायें हमेशा बदलती रहती है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मनुष्यसिद्ध – Manushyasiddha. Those salvated from human destinity. मनुष्य गति से सिद्ध होने वाले जीव अल्पबहुत्व की अपेक्षा ये संख्यात गुणे है “
द्रव्य अनुयोग One of the 4 expositions (Anuyogs) of Jainism, dealing with substances (matters) & metaphysics. 4 अनुयोगों में एक – पदार्थों के अस्तित्व तथा उनके प्रमाण का वर्णन अथवा शुद्ध-अशुद्ध जीव आदि छः द्रव्यों का वर्णन।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] व्यंजन निमित्तज्ञान –Vyainjana Nimittajnana. A science of omen (a type of indicating knowledge.Mole etc. special mark on the body). अष्टांग निमित्तज्ञान का एक भेद; सिर, मुख आदि में, रहने वाले तिल आदि व्यंजन कहलाते हैं ” इनसे लाभ- अलाभ आदि को जान लेना व्यंजन निमित्त ज्ञान है “