आचार्य श्रीजयसेन स्वामी परिचय श्री कुंदकुंददेव के समयसार आदि ग्रंथों के द्वितीय टीकाकार श्री जयसेनाचार्य भी एक प्रसिद्ध आचार्य हैं। इन्होंने समयसार की टीका में श्री अमृतचन्द्रसूरि के नाम का भी उल्लेख किया है और उनकी टीका के कई एक कलशकाव्यों को भी यथास्थान उद्धृकृत किया है अत: यह पूर्णतया निश्चित है कि श्री जयसेनाचार्य…
काव्य कथानक प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर काव्य कथानक (१) जन्म, बाल विवाह एवं ब्रह्मचारी जीवन भव्यात्माओं! संसार के रंगमंच पर अनन्त प्राणी अपना-अपना जीवन व्यतीत करके चले जाते हैं और पुन: पुन: चारों गति में परिभ्रमण करते हुए चौरासी लाख योनियों में दु:ख भोगते रहते हैं। कभी कोई बिरले पुण्यात्मा जीव होते हैं जो मानव जीवन…
निर्मल तपोमय व्यक्तित्व के साक्षात् दर्पण जागृतिकारी संत उपाध्याय नयनसागर जी महाराज त्याग, बलिदान और अध्यात्म की इस पावन धरती पर युगों-युगों से अनेकों संत विचरण करते आ रहे हैं जिन्होंने अन्धकार की कालरात्रि में पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह उदय होकर अपने अध्यात्म, अहिंसा और अनुशासन का आलोक बिखेरा है। ऐसे ही विलक्षण…
मयूर पिच्छी है पहचान दिगम्बर जैन साधु-साध्वियों की कर्मयोगी स्वस्ति श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी हर धर्म, सम्प्रदाय, जाति और वर्ग विशेष में प्राचीनकाल से अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कतिपय पहचान चिन्ह / चिन्हों का उपयोग किया जाता रहा है। आज प्रत्येक देश अपने पृथक् अस्तित्व को लेकर प्रतीक चिन्ह के रूप में…
मुनि और आर्यिका की चर्या में अन्तर आर्यिका जिनमती माताजी ( समाधिस्थ ) – शिष्या पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी साधु का लक्षण वीतरागता है, पूर्ण वीतरागता यथाख्यातचारित्र में होती है, उस परमोच्च भाव का ध्येय बनाकर भव्य जीव मोक्षमार्ग पर आरूढ़ होते हैं, ‘‘सम्यग्दर्शनज्ञज्ञनचारित्राणि—मोक्षमार्ग:’’ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मोक्षमार्ग है । जीवादि सात तत्त्वों…