निश्चय ध्यान
[[श्रेणी:03.तृतीय_अधिकार]] == निश्चय ध्यान जं किंचि वि चिंतंतो, णिरीहवित्ती हवे जदा साहू।लध्दूणय एयत्तं तदाहु तं णिच्छयं झाणं।।५५।।जब साधूजन एकाग्रमना, होकर जो कुछ भी ध्याते हैं।वे इच्छारहित तपोधन ही, निज समरस आनंद पाते हैं।।बस उसी समय निश्चित उनका, वह निश्चय ध्यान कहाता है।वह ध्यान अग्निमय हो करके, सब कर्म कलंक मिटाता है।।५५।। जब साधु एकाग्रता को…