तप का प्रभाव सुमन-सुधा जीजी! भादों का महीना आ गया है, पुराने विचार वाली महिलाओं ने व्रत-उपवास आदि कर करके अपना शरीर सुखाना शुरू कर दिया है। मैं तो उनकी खूब ही खिल्ली उड़ाती रहती हूँ। भला, व्रत-उपवास से कहीं मोक्ष मिलता है? फिर बाह्य तप तो सर्वथा निरर्थक ही है! सुधा-सुमन! ऐसा नहीं कहना,…
तत्त्व और पदार्थ हैं जीव अजीव इन्हीं दो के, सब भेद विशेष कहे जाते। वे आस्रव बंध तथा संवर, निर्जरा मोक्ष हैं कहलाते।। ये सात तत्त्व हो जाते हैं, इनमें जब मिलते पुण्य-पाप। तब नव पदार्थ होते इनको, संक्षेप विधी से कहूँ आज।।२८।। जीव और अजीव का वर्णन किया गया है। इन दो के ही…
भूलिये और मस्त रहिये याद रखना और भूल जाना मानव जीवन के दो अहम पहलू हैं। मनुष्य जीवन में जितना याद रखना जरूरी है उतना ही भूलना भी आवश्यक है। मनुष्य यदि भुलक्कड़ नहीं होता तो दु:खों के बोझ से उसका दम घुट जाता और मनुष्य का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता। हकीकत में…
व्यवहार-निश्चय मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन औ ज्ञान चरित, ये मुक्ती के कारण जानो। व्यवहारनयापेक्षा कहना, तीनों के लक्षण पहचानो।। इन रत्नत्रयमय निज आत्मा, निश्चयनय से शिव का कारण। इन उभय नयों के समझे बिन, नहिं होता शिवपथ का साधन।।३९।। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये व्यवहारनय से मोक्ष के कारण हैं और निश्चयनय से इन रत्नत्रय से परिणत…
सफल जीवन का रहस्य जर्मन के एक वैज्ञानिक का साक्षात्कार आ रहा था। उनसे पूछा गया—आप गरीब परिवार में पैदा हुए। आज इतने ऊँचे पद पर आसीन हो गये हैं इसका कारण क्या है ? आपके गुरु कौन है ? वैज्ञानिक हँसने लगे, हँसते—हँसते उन्होंने बहुत मार्मिक बातें बता दी। उनका पहला जवाब था—मैं अपने…
जैन तीर्थ की अवधारणा एवं संरक्षण —डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन महामंत्री—श्री अ.भा. दि. जैन विद्वत्परिषद् एल—६५, न्यू इन्दिरानगर, बुरहानपुर (म. प्र.) भारतीय संस्कृति अध्यात्म प्रधान संस्कृति है। जिसकी दो प्रमुख धारायें हैं एक श्रमण धारण दूसरी वैदिक धारा। दोनों ही संस्कृतियों में संसार सागर से पार होने के लिए तीर्थ स्थानों का विशेष महत्त्व बताया…
केन्द्रीय संग्रहालय इन्दौर में सुरक्षित परमार कालीन जैन श्रुत देवी की कांस्य प्रतिमा जैन प्रतिमा विज्ञान में विद्यादेवियों की कल्पना सर्वाधिक महत्वपूर्ण और मौलिक है । ‘अभिधान चिन्तामणि’ में विद्यादेवियों में श्रुतदेवी तथा सरस्वती की सम्मानीय परम्परा है। दिगम्बर परम्परा में वह मयूरवाहिनी है किन्तु श्वेताम्बर परम्परा में श्रुतदेवी को हंसवाहनी और पद्म, वीणा, पुस्तक…
जानें-समझें जैनधर्म आचार्य १०८ विरागसागर जी महाराज आज हम अपने नये विषय—‘सर्वोदयी जैनधर्म’ पर चलेंगे। तो सबसे पहली बात है कि जैन किसे कहते हैं ? क्योंकि कितने व्यक्ति ऐसे हैं जो इस उत्तर दे ही नहीं सकते। वैसे तो हर सम्प्रदाय की परिभाषा है कि जोे उसके अनुसार चलता है वह उसका अनुयायी माना…