जम्बूद्वीप
जम्बूद्वीप
चतुर्णिकाय देवत्रिशला – माताजी! आज शास्त्र में पढ़ा है कि [[चतुर्निकाय]] के देव भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं, वे कौन हैं और कहाँ रहते हैं? आर्यिका – पुण्यरूप देवगति नामकर्म के उदय से जो देवपर्याय को प्राप्त करते हैं उन्हें [[देव]] कहते हैं। इनके चार भेद हैं-[[भवनवासी]], [[व्यन्तर]], [[ज्योतिष्क]] और [[वैमानिक]]। पहली [[रत्नप्रभा…
धर्म की महिमा का तथा धर्म के उपदेश स्रग्धरा इत्यादिर्धर्म एष क्षितिपसुरसुखानघ्र्यमाणिक्यकोष: पायो दु:खनलानां परमपदलसत्सौधसोपानराजि:। एतन्माहात्म्यमीश: कथयतिजगतांकेवलीसाध्वेधीति सर्वस्म्न्विाङ्येथस्मरति परमहोमादृशस्तस्यनाम।। अर्थ — ग्रन्थकार कहते हैं कि पूर्व में जो दया आदिक पांच प्रकार का धर्म कहा है वह धर्म बड़े—२ चक्रवर्ती आदिक राजाओं के तथा इंद्र अहमिन्द्र आदि के सुख का देने वाला है तथा समस्त…
जैनधर्म और तीर्थंकर परम्परा द्वारा- पं. शिवचरणलाल जैन , मैनपुरी ( उ. प्र. ) तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित जैनधर्म अनादिनिधन धर्म है। संसार में अनंतानंत जीव जन्म मरण के दुखों से सन्तप्त हैं। भव भ्रमण का मूल कारण अनादिकालीन कर्मबन्धन हैै। यह कर्मबन्धन मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचरित्र के कारण संभूत है। जैन मान्यतानुसार जीव, पुदगल, धर्म,…
मंगलशान्ति जिनस्तवन समग्रतत्वदर्पणम् विमुक्तिमार्गघोशणम् कशायमोहमोचनं नमामि षान्तिजिनवरम् ।।1।। नमामि त्रिलोकवन्द्यभूशणं भवाब्धिनीरषोशणं जितेन्द्रयं अजं जिनं नमामि षान्तिजिनवरम् ।।2।। अखण्डखण्डगुणधरं प्रचण्डकामखण्डनं सुभव्यपदिनकरं नमामि षान्तिजिनवरम् ।।3।। एकान्तवादमतहरं सुस्याद्वादकौषलं मुनीन्द्र्रवृन्दसेवितं नमामि षान्तिजिनवरम् ।।4।। नृपेन्द्रचक्रमण्डनं प्रकर्मचक्रचूरणं सुधर्मचक्रचालकं नमामि षान्तिजिनवरम् ।।5।। अग्रन्थनग्नकेवलं विमोक्षधामकेतनं अनिश्टघनप्रभत्र्जनं नमामि षान्तिजिनवरम् ।।6।। महाश्रमणमकित्र्चनं अकामकामपदधरं सुतीर्थकर्तृशोडषं नमामि षान्तिजिनवरम् ।।7।। महाव्रतन्धरं वरं दयाक्षमागुणाकरं सुदृश्टिज्ञानव्रतधरं नमामि षान्तिजिनवरम् ।।8।।नमामि…
बाहुबली भगवान कृतयुग की आदि में अंतिम कुलकर महाराजा नाभिराज हुए हैं। उनकी महारानी मरुदेवी की पवित्र कुक्षि से इस युग के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म हुआ है। वैदिक परम्परा में इन्हें अष्टम अवतार माना गया है। ऋषभदेव के दो रानियाँ थीं-यशस्वती और सुनन्दा। यशस्वती के भरत, वृषभसेन आदि सौ पुत्र हुए और ब्राह्मी…
जिनबिम्ब निर्माण माप अथ बिम्बं जिनेन्द्रस्य, कर्तव्यं लक्षणान्वितम्। ऋज्वायतसुसंस्थानं, तरूणांगं दिगम्बरम्।।१।। अर्थ-जिनेन्द्र भगवान का प्रतिबिम्ब सरल, लंबा, सुंदर, समचतुरस्र संस्थान तरुण अवस्थाधारी, नग्न जातलिंगधारी सर्व लक्षणसंयुक्त करना योग्य है।।१।। श्रीवत्सभूषितोरस्कं, जानुप्राप्तकराग्रजं। निजांगुलप्रमाणेन, साष्टांगुलशतायुतम्।।२।। अर्थ-श्रीवत्सचिन्ह से भूषित है वक्षस्थल जिनका और गोड़े पर्यंत (घुटने पर्यंत) लंबायमान हैं भुजा जिनकी, ऐसे निजांगुल के प्रमाण से १०८ भागप्रमाण…
गुणस्थान क्या हैं ? मोह और योग के निमित्त से आत्मा के गुणों में जो तारतम्य होता है उसे गुणस्थान कहते हैं। ये गुणस्थान—१ मिथ्यात्व, २ सासादन, ३ मिश्र, ४ अविरत सम्यग्दृष्टि, ५ देश विरत, ६ प्रमत्त विरत, ७ अप्रमत्त विरत, ८ अपूर्व करण, ९ अनिवृत्ति करण, १० सूक्ष्म सांपराय, ११ उपशांत मोह, १२ क्षीण…
जैन स्तोत्र और भगवान पार्श्वनाथ -डॉ. कपूरचंद जैन- खतौली भारतीय धर्मों/दर्शनों में जैन धर्म/दर्शन का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। यही एक दर्शन है जो पूर्णत: व्यक्ति स्वातन्त्र्य की घोषणा करता है। जैनधर्म/दर्शन की प्राचीन भाषा प्राकृत रही है। प्राकृत भाषा में स्तोत्र वे लिए ‘थुई’ और ‘थुदि’ इन दोे शब्दों का प्रयोग मिलता है। संस्कृत…
खानदान और खानपान शुद्धि का महत्त्व -पं. शिवचरनलाल जैन, मैनपुरी (उ.प्र.) वन्दे धर्मतीर्थेशं, श्रीपुरुदेवपरम् जिनम्। दानतीर्थेशश्रेयासं चापि शुद्धिप्रदायकम्।। जातिकुलशुद्धिमादाय, अशनपानपवित्रताम्। परमस्थानसंप्राप्ता: विजयन्तु परमेष्ठिन:।।स्वोपक्ष।। मैं धर्मतीर्थ, व्रत तीर्थकर्ता उत्कृष्ट प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान और शुद्धि प्रदायक दानतीर्थेश श्रेयांस को प्रणाम करता हूँ। जिन्होंने जाति, कुल शुद्धि और भोजनपान की शुद्धि प्राप्त कर सप्त परमस्थानों सहित…