षट् आवश्यक क्रिया जिनको अवश्य ही करना होता है, वे आवश्यक क्रियाएँ कहलाती हैं। उनके छ: भेद हैं-देवपूजा, गुरुपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान। १. देवपूजा – जिनेन्द्र भगवान के चरणों की पूजा संपूर्ण दु:खों का नाश करने वाली है और सभी मनोरथों को सफल करने वाली है अत: श्रावक को प्रतिदिन देवपूजा अवश्य करनी…
जैनशासन में कर्म सिद्धान्त सुदर्शन—गुरूजी! कर्म किसे कहते हैं ? गुरूजी—जिसके द्वारा जीव परतंत्र किया जाता है वह कर्म है। इस कर्म के निमित्त से ही यह जीव इस संसार में अनेकों शारीरिक, मानसिक और आगंतुक दु:खों को भोग रहा है। सुदर्शन—इस कर्म का सम्बन्ध जीव के साथ कब से हुआ है ? गुरूजी—बेटा! जीव…
दशलक्षण धर्म यह भादों मास सभी महीनों, में राजा है उत्तम जग में। यह धर्म हेतु है और अनेक, व्रत रत्नों का सागर सच में।। यह महापर्व है दशलक्षण, दशधर्म मय मंगलकारी। रत्नत्रय निधि को देता है, सोलहकारणमय सुखकारी।। उत्तम क्षमा सब कुछ अपराध सहन करके, भावों से पूर्ण क्षमा करिये। यह उत्तम क्षमा जगन्माता,…
”क्या जड़ कर्म भी चेतना का बिगाड़ कर सकता है” हाँ, अवश्य कर सकता है और कर ही रहा है जभी तो आप संसारी हैं अन्यथा सिद्धशिला पर जाकर विराजमान हो जाते, अपने अनंतज्ञान से सारे विश्व को एक समय में देख लेते, अपनी अनंतशक्ति के द्वारा अनंत पदार्थों को एवं उनकी अनंत भूत भावी…