क्या राजा सोमप्रभ एवं श्रेयांस श्री कामदेव बाहुबली के पुत्र थे युग की आदि में भगवान ऋषभदेव ने अयोध्या नगरी में जन्म लिया था। माता मरुदेवी एवं पिता नाभिराज ने यौवन अवस्था में भगवान ऋषभदेव का विवाह यशस्वती और सुनन्दा नामक दो कन्याओं के साथ सम्पन्न किया, जिसमें से महारानी यशस्वती ने क्रम-क्रम से भरत…
बोधप्राभृत सार ग्यारह महत्वपूर्ण स्थान (१) आयतन (२) चैत्यगृह (३) जिनप्रतिमा (४) दर्शन (५) जिनबिंब (६) जिनमुद्रा (७) ज्ञान (८) देव (९) तीर्थ (१०) अरहन्त (११) प्रव्रज्या इन ग्यारह विषयों को बोधप्राभृत में वर्णन किया है। (१) आयतन — जिनमार्ग में जो संयम सहित मुनिरूप है उसे आयतन कहा है। अर्थात् मन, वचन, काय और…
सनत्कुमार चक्रवर्ती कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर१ में कुरुवंश की परम्परा में चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार हुए जो रूपपाश से खिंचकर आये हुए देवों द्वारा संबोधित हो दीक्षित हो गये थे। आराधना कथाकोश में इनका जीवनवृत्त इस प्रकार है- ये सनत्कुमार चक्रवर्ती सम्यग्दृष्टियों में प्रधान थे। उन्होंने छह खण्ड पृथ्वी अपने वश में कर ली थी।…
ध्यान और ध्याता मुनिवरगण ध्यान लगा करके, इन द्विविध मोक्ष के कारण को। जो निश्चय औ व्यवहार रूप, निश्चित ही पा लेते उनको।। अतएव प्रयत्न सभी करके, तुम ध्यानाभ्यास करो नित ही। सम्यक् विधि पूर्वक बार-बार, अभ्यास सफल होता सच ही।।४७।। मुनिराज निश्चित ही ध्यान के द्वारा व्यवहार और निश्चय इन दोनों प्रकार के मोक्ष…
नव द्वीप समुद्रों के रक्षक देवों के नाम आदरअणादरक्खा जंबूदीवस्स अहिवई होंति। तह य पभासो पियदंसणो य लवणंबुरासिम्मि१।।३८।। भुंजेदि प्पियणामा दंसणणामा य धादईसंडं। कालोदयस्स पहुणो कालमहाकालणामा य।।३९।। पउमो पुंडरियक्खो दीवं भुंजंति पोक्खरवरक्खं। चक्खुसुचक्खू पहुणो होंति य मणुसुत्तरगिरिस्स।।४०।। सिरिपहुसिरिधरणामा देवा पालंति पोक्खरसमुद्दं। वरुणो वरुणपहक्खो भुंजंते चारु वारुणीदीवं।।४१।। वारुणिवरजलहिपहू णामेणं मज्झमज्झिमा देवा। पंडुरयपुप्फदंता दीवं भुंजंति चारु खीरवरं।।४२।।…
विदेह क्षेत्र की सम्पूर्ण नदियाँ बादालसहस्सं पुह कुरुदुणदी दुगुदुपासजादणदी। चोद्दसलक्खडसदरी विदेहदुगसव्वणइसंखा।।७४८।। द्वाचत्वािंरशत्सहस्राणि पृथव् कुरुद्वयनद्यः द्विकद्विपाश्र्वजातनद्यः। चतुर्दशलक्षाष्टसप्ततिः विदेहद्विकसर्वनदीसंख्या।।७४८।। बादाल। देवोत्तरकुर्वोः नदीद्वयोभयपाश्र्वजाता नद्यः पृथव्व् द्वाचत्वारिंशत्सहस्राणि देवकुरुजा नद्यः ४८००० उत्तरकुरुजा नद्यः ८४००० विदेहद्वयगतसर्वनदीसंख्या अष्टसप्तत्युत्तरचतुर्दशलक्षाणि १४०००७८। तत्कथं ? विदेहगतगङ्गासिन्धुसमनदीनां ६४ प्रत्येवं परिवारनद्यः १४००० विभङ्गनदीनां १२ प्रत्येवं परिवारनद्यः २८००० देवोत्तरकुर्वोः सीतासीतोदयोः २ प्रत्येक् परिवारनद्यः ८४००० एतासु स्वस्वगुणकारेण गुणयित्वा तत्र तत्र…