क्या राजा सोमप्रभ एवं श्रेयांस श्री कामदेव बाहुबली के पुत्र थे युग की आदि में भगवान ऋषभदेव ने अयोध्या नगरी में जन्म लिया था। माता मरुदेवी एवं पिता नाभिराज ने यौवन अवस्था में भगवान ऋषभदेव का विवाह यशस्वती और सुनन्दा नामक दो कन्याओं के साथ सम्पन्न किया, जिसमें से महारानी यशस्वती ने क्रम-क्रम से भरत…
बोधप्राभृत सार ग्यारह महत्वपूर्ण स्थान (१) आयतन (२) चैत्यगृह (३) जिनप्रतिमा (४) दर्शन (५) जिनबिंब (६) जिनमुद्रा (७) ज्ञान (८) देव (९) तीर्थ (१०) अरहन्त (११) प्रव्रज्या इन ग्यारह विषयों को बोधप्राभृत में वर्णन किया है। (१) आयतन — जिनमार्ग में जो संयम सहित मुनिरूप है उसे आयतन कहा है। अर्थात् मन, वचन, काय और…
विदेह क्षेत्र की सम्पूर्ण नदियाँ बादालसहस्सं पुह कुरुदुणदी दुगुदुपासजादणदी। चोद्दसलक्खडसदरी विदेहदुगसव्वणइसंखा।।७४८।। द्वाचत्वािंरशत्सहस्राणि पृथव् कुरुद्वयनद्यः द्विकद्विपाश्र्वजातनद्यः। चतुर्दशलक्षाष्टसप्ततिः विदेहद्विकसर्वनदीसंख्या।।७४८।। बादाल। देवोत्तरकुर्वोः नदीद्वयोभयपाश्र्वजाता नद्यः पृथव्व् द्वाचत्वारिंशत्सहस्राणि देवकुरुजा नद्यः ४८००० उत्तरकुरुजा नद्यः ८४००० विदेहद्वयगतसर्वनदीसंख्या अष्टसप्तत्युत्तरचतुर्दशलक्षाणि १४०००७८। तत्कथं ? विदेहगतगङ्गासिन्धुसमनदीनां ६४ प्रत्येवं परिवारनद्यः १४००० विभङ्गनदीनां १२ प्रत्येवं परिवारनद्यः २८००० देवोत्तरकुर्वोः सीतासीतोदयोः २ प्रत्येक् परिवारनद्यः ८४००० एतासु स्वस्वगुणकारेण गुणयित्वा तत्र तत्र…
ढाईद्वीप में कृत्रिम जिनमंदिर (आदिपुराण से) श्रुत्वेति तद्वचो दीनं करुणाप्रेरिताशयः। मनः प्रणिदधावेवं भगवानादिपूरुषः१।।१४२।। पूर्वापरविदेहेषु या स्थितिः समवस्थिता। साद्य प्रवत्र्तनीयात्र ततो जीवन्त्यमूः प्रजाः।।१४३।। षट्कर्माणि यथा तत्र यथा वर्णाश्रमस्थितिः। यथा ग्रामगृहादीनां संस्त्यायाश्च पृथग्विधाः।।।१४४।। तथात्राप्युचिता वृत्तिरुपायैरेभिरङ्गिनाम्। नोपायान्तरमस्त्येषां प्राणिनां जीविकां प्रति।।१४५।। कर्मभूरद्य जातेयं व्यतीतौ कल्पभूरुहाम्। ततोऽत्र कर्मभिः षड्भिः प्रजानां जीविकोचिता।।१४६।। इत्याकलय्य तत्क्षेमवृत्त्युपायं क्षणं विभुः। मुहुराश्वासयामास भा भैष्टेति तदा प्रजाः।।१४७।।…
नाभिगिरि पर जिनमंदिर हेमवदस्स य रुंदा चालसहस्सा य ऊणवीसहिदा। तस्स य उत्तरबाणो भरहसलागादु सत्तगुणा१।।१६९८।। अवसेसवण्णणाओ सरिसाओ सुसमदुस्समेणं पि। णवरि यवट्ठिदरूवं परिहीणं हाणिवड्ढीहि।।१७०३।। तक्खित्ते बहुमज्झे चेट्ठदि सद्दावणि त्ति णाभिगिरी। जोयणसहस्सउदओ तेत्तियवासो सरिसवट्टो।।१७०४।। १०००। १०००। सव्वस्स तस्स इगितीससयाइं तह य बासट्ठी। सो पल्लसरिसठाणो कणयमओ बट्टविजयड्ढो।।१७०५।। एक्कसहस्सं पणसयमेक्कसहस्सं च सगसया पण्णा। उदओ मुहभूमज्झिमवित्थारा तस्स धवलस्स।।१७०६।। १०००। ५००। १०००।…
पर्याप्ति प्ररूपणा सार पर्याप्ति—ग्रहण किये गये आहार वगर्णा को खल-रस भाग आदि रूप परिणमन कराने की जीव की शक्ति के पूर्ण हो जाने को ‘‘पर्याप्ति’’ कहते हैं। ये पर्याप्तियाँ जिनके पाई जाएं उनको पर्याप्त और जिनकी वह शक्ति पूर्ण न हो उन जीवों को अपर्याप्त कहते हैं। जिस प्रकार कि घट, पट आदि द्रव्य बन…